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________________ (२०) अनार्तःशांतिमान्मयों न तिर्यग नापि नारकः । धर्मध्यानी पुरो मर्योऽनशनीत्वमरेश्वरः ॥ अर्थ, जाकै मरणका अवसरमैं आर्त जो दुःखरूप परिणाम नहीं होय अर शांतिमान कहिये रागरहित । द्वेषरहित समभावरूप चित्त होय सो पुरुष तिर्यंच नहीं होय नारकी नहीं होय अर जो धर्मध्यानसहित अनशनव्रत धारण करकै मरै सो तो स्वर्गलोकमैं इंद्र होय तथा महर्द्धिक देव होय अन्य पर्याय नहीं पावै ऐसा नियम है । भावार्थ, यो उत्तम मरणको अवसर पाय करिक आराधनासहित मरणमैं यत्न करो अर मरण आवतै भयभीत होय परिग्रहमैं ममत्व धारि आर्त' परिणामनिसों मरणकरि कुगतिमैं मत जावो यो अवसर अनंतभवनिमैं नहीं मिलैगो अर मरण छांडगा नहीं तातें सावधान होय धर्मध्यानसहित धैर्य धारणकरि देहका त्याग करो ॥ १५ ॥ तप्तस्य तपसश्चापि पालितस्य व्रतस्य च। पठितस्य श्रुतस्यापि फलंमृत्युःसमाधिना॥ अर्थ,-तपका संताप भोगनेका अर व्रतनिके पालनेका अर श्रुतके पढ़नेका फल तो समाधि जो अपने आत्माकी सावधानीसहित मरण करना है। भावार्थ,
SR No.010656
Book TitleAnitya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1914
Total Pages155
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size5 MB
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