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________________ प्रस्तावना स्वास्थ्य = स्वात्मस्थिति (३१), आत्म-विशुद्धि (४८), कैवल्योपलब्धि (५५), मुक्ति, विमुक्ति (२७), निवृति (५०.६८), मोक्ष (६०, ७३, ११७), श्रायस (११६), श्रेयस (५१, ७५), निःश्रेयस (५०), निरंजना शान्ति (१२), उच्च शिवताति (१५), शाश्वतशर्मावाप्ति (७१), भवक्लेश-भयोपशान्ति (८०) और भवोपशान्ति तथा अभव-सौख्य-संप्राप्ति (११५), जैसे पद-वाक्यों अथवा नामोंके द्वारा उल्लिखित किया है। इनमेंसे कुछ नाम तो शुद्धस्वरूपमें स्थितिपरक अथवा प्रवृत्तिपरक हैं, कुछ पररूपसे निवृत्तिके द्योतक हैं और कुछ उस विकासावस्थामें होनेवाले परम शान्ति-सुखके सूचक है। 'जिनश्री' पद उपमालंकारकी दृष्टिसे 'आत्मलक्ष्मी' का ही वाचक है; क्योंकि घातिकर्ममलसे रहित शुद्धात्माको अथवा आत्मलक्ष्मीके सातिशय विकासको प्राप्त आत्माको ही 'जिन' कहते हैं। जिनश्री' का ही दूसरा नाम 'निजश्री" है। 'जिन' और अर्हत् पद समानार्थक होनेसे आर्हन्त्यलक्ष्मीपद भी आत्मलक्ष्मीका ही वाचक है। इसी स्वात्मोपलब्धिको पूज्यपाद आचार्यने, सिद्धभक्तिमें, 'सिद्धि' के नामसे उल्लेखित किया है। अपने शुद्धस्वरूपमें स्थितिरूप यह आत्माका विकास ही मनुष्योंका स्वार्थ है-असली स्वप्रयोजन है-क्षणभंगुरभोगइन्द्रिय-विषयोंका सेवन-उनका स्वार्थ नहीं है; जैसा कि ग्रन्थके निम्न वाक्यसे प्रकट है १ स्तुतिविद्या के पार्श्वजिन-स्तवनमें 'पुरुनिजश्रियं' पदके द्वारा इसी नामका उल्लेख किया गया है। २ “सिद्धिः स्वात्मोपलब्धिः प्रगुणगुणगणोच्छादि-दोषापहारात्।"
SR No.010650
Book TitleSwayambhu Stotram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1951
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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