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________________ स्वयम्भूस्तोत्रं में प्रवृत्त हो सका हूँ। प्रस्तावना कैसी लिखी गई और वह ग्रन्थका ठीक परिचय कराने तथा उसकी उपयोगिताको स्पष्ट करने में कहाँ तक समर्थ है, इस तो विज्ञ पाठक ही जान सकेंगे, मैं तो यहाँ पर सिर्फ इतना ही निवेदन कर देना चाहता हूँ कि इस प्रस्तावनाके पीछे शक्तिका जितना व्यय हुआ है और उसके द्वारा जितना वस्तुतत्त्व अथवा प्रमेय पाठकोंके सामने लाया गया है उसे देखते हुए यदि प्रेमी पाठकजन प्रतीक्षाजन्य कष्टको भुलादेंगे और ग्रन्थके महत्वका अनुभव करते हुए यह महसूस करेंगे कि हमने ग्रन्थको परखनेकी कसौटी तथा उसके अन्तःप्रवेशकी कला आदिके रूपमें कोई नई चीज प्राप्त की है तो मैं अपनेको सफलपरिश्रम और कृतकार्य हुआ समझूगा और तब मुझे भी इस ग्रन्थके विलम्बसे प्रकाशित होनेका कोई खेद नहीं रहेगा। आशा है प्रेमी पाठकजन इस अनमोल ग्रन्थरत्नसे स्वयं लाभ उठाते हुए, लोकहितकी दृष्टिसे इसके प्रचार और प्रसारमें अपना पूर्णसहयोग प्रदान करेंगे और इस तरह दूसरोंको भी इससे यथेष्ट लाभ उठानेका पूरा अवसर देनेमें समर्थ होंगे। जुगलकिशोर मुख्तार अधिष्ठाता 'चीरसेवामन्दिर'
SR No.010650
Book TitleSwayambhu Stotram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1951
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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