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सुफल
सन् १९३९ में श्रीमान् बाबू छोटेलालजी जैन रईस कलकत्ता-10 | का भतीजा चि० चिरञ्जीलाल सख्त बीमार पड़ा था, कलकत्ताके
सुप्रसिद्ध वैद्यों स्था डाक्टरोंने जवाब दे दिया था और उसे घंटे
दो घंटेका मेहमान बतलाया था। इस निराशाके वातावरणमय है | कठिन अवसरपर बाबू साहबने शुद्ध हृदयसे भ० स्वामी समन्त
भद्रका स्मरण करके रोगीके आरोग्यकी कामना की और अपनी | ओरसे ५००) रु. के दानका संकल्प किया। उसी समयसे रोगी
के रोगने पलटा खाया और वह वैद्यों-डाक्टरोंको आश्चर्यमें डालता हुअा शीघ्र ही नीरोग हो गया। अतः बाबू साहबने तभी पांचसौ रुपयेकी उक्त रकम अपने संकल्पानुसार वीरसेवामन्दिर सरसावाको ग्रन्थ-प्रकाशन-जैसे पुण्य-कार्यकी सहायतार्थ दानमें ! भेज दी थी। स्वामी समन्तभद्रके प्रस्तुत ग्रन्थ-रत्नका यह प्रकाशन उसी दानका एक सुन्दर सुमधुर फल है। आशा है बाबू छोटेलालजी इस सुफलको पाकर और इसके दर्शन, स्पर्शन, सुगन्ध-सेवन एवं रसास्वादन-द्वारा दूसरोंको भी लाभान्वित होता हुआ देखकर प्रसन्न होंगे।
जुगलकिशोर मुख्तार अधिष्ठाता 'वीरसेवामन्दिर'