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________________ स्वयम्भूस्तोत्र लघु-गुरु होते हैं उसे 'वैतालीय वृत्त' कहते हैं। २१. . शिखरिणी प्रत्येक चरणमें यगण, मगण, तगण, सगण, भगण और लघुगुमके भ्रमको लिये हुए सप्तदश (६,११) वर्णात्मक वृत्तका नाम 'शिखरिणी' है। २२ उद्गता जिसके प्रथमचरणमें क्रमश: मगण, जगण सगण और लघु, द्वितीय चरणमें नगण, संगण, जगण और गुरु, तृतीय चरणमें भगण, नगण, जगण और लघुगुरु तथा चौथे चरणमें सगण, जगण, सगण, जगण और गुरु हों उसे 'उद्गता' वृत्त कहते हैं। वंशस्थ उपयुक्त (१) आऱ्यांगीति जिसके विषमचरणोंमें १२-१२ (स्कन्धक) और समचरणोंमें २०-२० मात्राएँ होती हैं उसे 'ाांगीति' अथवा 'स्कन्धक' वृत्त कहते हैं। गणलक्षण-आठगणोंमेंसे जिसके आदिमें गुरु वह भगण,' जिसके मध्यमें गुरु वह जगण', जिसके अन्त में गुरु वह 'मगण, जिसके आदिमें लघु वह यगण, जिसके मध्यमें लघु वह 'रगण', जिसके अन्तमें लघु वह 'तगण,' जिसके तीनों वर्ण गुरु वह 'मगण' और जिसके तीनों वर्ण लघु वह 'नगण' कहलाता है। लघु एकमात्रिक और गुरु द्विमात्रिक होता है।
SR No.010650
Book TitleSwayambhu Stotram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1951
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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