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________________ प्रस्तावना .५ साधनरूप अर्थ से साध्यरूप अर्थका प्रतिपादन है— उसे 'युक्त्य - नुशासन' कहते हैं और वही ( हे वीरभगवन् ! ) आपको अभिमत है '। इससे साफ जाना जाता हैं कि स्वयम्भूस्तोत्रमें जो कुछ युक्तिवाद है और उसके द्वारा अर्थका जो प्ररूपण किया गया है वह सब प्रत्यक्षाऽविरोध के साथ साथ आगमके भी अविरोधको लिए हुए है अर्थात् जैनागमके अनुकूल है। जैनागम 'अनुकूल होनेसे आगमकी प्रतिष्ठाको प्राप्त है । और इस तरह यह ग्रन्थ आगमके-आप्तवचनके—तुल्य मान्यताकी कोटि में स्थित है । वस्तुतः समन्तभद्र महान के वचनोंका ऐसा ही महत्व है । इसीसे उनके 'जीवसिद्धि' और 'युक्त्यनुशासन' जैसे कुछ ग्रन्थोंका नामोउल्लेख साथमें करते हुए विक्रमकी हवीं शताब्दीके आचार्य जिनसेनने, अपने हरिवंशपुराणमें, समन्तभद्रके वचनको श्रीवीर - भगवान के वचन ( आगम) के समान प्रकाशमान एवं प्रभावादिकसे युक्त बतलाया है'। और ७ वीं शताब्दीके अकलंकदेव - जैसे महान् विद्वान् आचार्यने, देवागमका भाष्य लिखते समय, यह स्पष्ट घोषित किया है कि समन्तभद्रके वचनोंसे उस स्याद्वादरूपी पुण्योदधितीर्थका प्रभाव कलिकालमें भी भव्यजीवोंके आन्तरिक मलको दूर करनेके लिए सर्वत्र व्याप्त हुआ है, जो सर्व पदार्थों और तत्वोंको अपना विषय किये हुए हैं । इसके सिवाय, १ जीवसिद्धि- विधायीह कृत- युक्त्यनुशासनं । वचः समन्तभद्रस्य वीरस्येव विजृम्भते ॥ - हरिवंशपुराण २ तीर्थं सर्वपदार्थ तत्व विषय स्याद्वाद-पुण्योदधे-' व्यानामकलंकभावकृतये प्रभावि काले कलौ । येनाचार्य-समन्तभद्र-यतिना तस्मै नमः सन्ततं कृत्वा वित्रियते स्तवो भगवतां देवागमस्तत्कृतिः ॥ - अष्टशती
SR No.010650
Book TitleSwayambhu Stotram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1951
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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