SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 11
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रस्तावना' स्थिति में बहुत संभव है कि स्वयम्भू स्तोत्र के अन्तिम पद्य में जो 'समन्तभद्रं ' पद प्रयुक्त हुआ है उसके द्वारा स्वयम्भू स्तोत्रका दूसरा नाम 'समन्तभद्रस्तोत्र' सूचित किया गया हो । 'समन्तभद्रं 'पद् वहाँ वीरजिनेन्द्र के मन- शासन के विशेपणरूपमें स्थित है और उसका अर्थ है 'सब ओर से भद्ररूप - यथार्थता, निबोधता और परहित - प्रतिपादनतादिगुणोंकी शोभासे सम्पन्न एवं जगत के लिये कल्याणकारी | यह स्तोत्र वीरके शासनका प्रतिनिधित्वकरता है - उसके स्वरूपका निदर्शक है - और सब ओरसे भद्ररूप है अतः इसका 'समन्तभद्रस्तोत्र' यह नाम भी सार्थक जान पड़ता है, जो समन्तात् भद्र' इस पदच्छेदकी दृष्टिको लिये हुए है और उसमें लेषालङ्कारसे ग्रन्थकारका नाम भी उसी तरह समाविष्ट हो जाता है जिस तरह कि वह उक्त 'समन्तभद्र' पदमें संनिहित है । और इसलिये इस द्वितीय नामोल्लेखन में लेखकोंकी कोई कर्तृति या गलती प्रतीत नहीं होती । यह नाम भी प्रायः पहले से ही इस ग्रन्थको दिया हुआ जान पड़ता है । ग्रन्थका सामान्य परिचय और महत्व स्वामी समन्तभद्रकी यह 'स्वयम्भूस्तोत्र' कृति समन्तभद्रभारतीका एक प्रमुख अंग है और बड़ी ही हृदय-हारिणी एवं पूर्वरचना है। कहने के लिये यह एक स्तोत्रग्रन्थ है - स्तोत्रकी पद्धतिको लिये हुए है और इसमें वृषभादि चौबीस जिनदेवोंकी स्तुति की गई है; परन्तु यह कोरा स्तोत्र नहीं. इसमें स्तुतिके बहाने जैनागमका सार एवं तत्त्वज्ञान कूट कूट कर भरा हुआ है । इसीसे टीकाकार आचार्य प्रभाचन्द्र ने इसे 'निःशेष- जिनोक्तधर्म-विषयः' ऐसा विशेषण दिया है और 'स्तवोऽयमसमः' पदों के द्वारा इसे अपना सानी ( जोडा) न रखनेवाला अद्वितीय स्तवन प्रकट किया है। साथ ही इसके पदोंको सूक्तार्थं', 'अमल', 'स्वल्प'
SR No.010650
Book TitleSwayambhu Stotram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1951
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy