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________________ स्वयम्भूस्तोत्र स्वामी समन्तभद्र एक क्षत्रिय-वंशोद्भव राजपुत्र थे, उनके पिता फणिमण्डलान्तर्गत 'उरगपुर' के राजा थे । वे जहां क्षत्रियोचित तेजसे प्रदीप्त थे वहाँ आत्महित-साधना और लोकहितकी भावनासे भी ओत-प्रोत थे, और इसलिये घर-गृहस्थीमें अधिक समय तक अटके नहीं रहे थे। वे राज्य-वैभवके मोहमें न फंसकर घरसे निकल गये थे, और कांची (दक्षिणकाशी) में जाकर 'नग्नाटक' (नग्न ) दिगम्बर साधु बन गय थे । उन्होंने एक परिचयपद्यमें अपनेको काँचीका 'नग्नाटक' प्रकट किया है और साथ ही निर्ग्रन्थजैनवादी' भी लिखा है-भले ही कुछ परिस्थितियोंके वश वे कतिपय स्थानोंपर दो एक दूसरे साधु-वेष भी धारण करनेके लिये बाध्य हुए हैं. जिनका पद्यमें उल्लेख है, परन्तु व सब अस्थायी थे और उनसे उनक मूलरूपमें कर्दमाक्त-मणिक समान, कोई अन्तर नहीं पड़ा.था-वे अपनी श्रद्धा और संयमभावनामें बराबर अडोल रहे हैं । वह पद्य इस प्रकार हैकांच्यां नग्नाटकोऽहं मलमलिनतनुर्लाम्बुशे पाण्डुपिण्डः पुण्ड्रोद्रे शाक्यभिक्षुः' दशपुरनगरे मिष्टभोजी परिबाट । वाराणस्यामभूवं शशधरधवलः पाण्डुरांगस्तपस्वी राजन् यस्यास्ति शक्तिः स वदतु पुरतो जैननिग्रन्थवादी । १ 'जैसा कि उनकी 'प्राप्तमीमांसा' कृतिकी एक प्राचीन ताडपत्रीय . प्रतिके निम्न 'पुष्पिका-वाक्यसे जाना जाता है, जो श्रवण बेल्गोलके श्रीदौर्बलिजिनदास शास्त्रीके शास्त्रभण्डार में सुरक्षित है 'इति श्रीफणिमण्डलालंकारस्योरगपुराधिपसूनोः श्रीस्वामिसमन्तभद्र- . मुनेः कृतौ प्राप्तमीमांसायाम् ।' २ यह पद अग्रोल्लेखित जीण गुट केके अनुसार 'शाकभक्षी' हैं ।
SR No.010650
Book TitleSwayambhu Stotram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1951
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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