SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 94
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - wwwwwwwwwwww सन्मति-विद्या प्रकाशमाला आत्मसस्कारका उपाय तदेव तस्मै कस्मैचित्परस्मै ब्रह्मणेऽमुना । सूक्ष्मेनेदं मनः शब्दब्रह्मणा संस्करोम्यहम् ॥४४॥ _ 'अतएव उस अनिर्वचनीय किसी परब्रह्मकी-परमोस्कृष्ट आत्मपदकी प्राप्तिके लिये इस सूक्ष्म शब्द-ब्रह्मके द्वारा-'सोऽहं इस प्रकारके अन्तर्जल्पसे-मैं इस मनको संस्कारित करता हूँ।' __व्याख्या—उक्त स्थितिमें आत्मा परब्रह्मपदकी प्राप्तिके लिये अपने मनको 'सोऽहं' इस सूक्ष्म शब्दब्रह्मके द्वारा संस्कारित करता है,उसीके संकल्पका इस पद्यमें उल्लेख है। परंज्योतिका स्पष्टीक ण । हृत्सरोजेश्ष्टपत्रेऽधोमुखे द्रव्यमनोउम्बुजे । योगार्क-तेजसा बुद्ध स्फुरन्नस्मि परंमहः ॥४५॥ ' 'आठ पत्रोंवाले अधोमुख द्रव्यमनरूप कमलमें, योगरूप सूर्यके तेजसे विकसित हुदय-कमलके भीतर स्कुरायमान परंज्योति-स्वरूप मैं हूँ।' व्याख्या-मूच्म शब्द-ब्रह्मरूप 'सोऽहं' की भावनासे अपने मनको संस्कारित करते हुए ध्यानावस्थामें आत्मा १तस्मात्कारणात् २ गुण-दोष-विचार-स्मरणादि-प्रणिधानमात्मनोभावमनस्तदभिमुखस्यास्यैवाऽनुमाहि-पुद्गलोच्चयो द्रव्यमनः ।
SR No.010649
Book TitleAdhyatma Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1957
Total Pages137
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy