SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 90
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५० सन्मति विद्या प्रकाशमाला "A VAPA NNNNN 'जीव- पुद्गलकी व्यंजनपर्याय वाग्गोचर है, नश्वर न · होकर स्थिर है और मूर्तिक है । प्रत्येक द्रव्य अर्धपर्याय और व्यंजन पर्याय -मय है और वे पर्यायें द्रव्य-मय हैं ।' व्याख्या - इस पद्यमें जीव और पुद्गल द्रव्योंकी व्यंजनपर्यायका उल्लेख है और यह प्रकट किया है कि वह पर्याय वचनगोचर है, क्षणभंगुर न होकर टिकनेवाली है और सुर्तिक है। साथ ही, यह भी व्यक्त किया है कि प्रत्येक द्रव्य इन दोनों पर्यायरूप होता है और ये पर्याय ド द्रव्यके साथ तन्मय होती हैं—उससे अलग नहीं होतीं । मुक्ताहारके रूपमे आत्माकी भावना चेतनोऽहमिति द्रव्ये शौक्ल्यं' मुक्ताश्च हारवत् । चैतन्यं चिद्विवर्ताश्च' मय्या मील्य मिलाम्यजे ४० 'जिस प्रकार हारमें हारकी, मोतियोंकी और शुक्लताकी पृथक् पृथक् प्रतीति होते हुए भी वे सब हार-मय हैं, उसी • प्रकार आत्मद्रव्य में 'मैं चेतन हूँ, मुझमें चैतन्य है और चेतन - पर्यायोंको अभिव्याप्त करके में अनरूप आत्मद्रव्यमें मिल रहा हूँ -- तन्मय हो रहा हूँ, ऐसी प्रतीति होती है ।' व्याख्या -- वहाँ मुक्ताहारके रूपमे आत्माकी अनुभूि की गई है। मुक्ताहारमें जैसे मोती और मोतियोंमें शुक्रवा १ ज्ञान पर्यायान २ आत्मद्रव्ये ।
SR No.010649
Book TitleAdhyatma Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1957
Total Pages137
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy