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________________ अध्यात्म-रहस्य 'जिसने अनादिकालसे उस प्रकार-उपयुक्त प्रकारजाना है, जो आज यहाँ इस प्रकारसे जान रहा है और जो अनन्तकाल तक अन्य किसी प्रकारसे नानता रहेगा वह चेतनद्रव्य मैं हूँ। व्याख्या-यहाँ स्वात्मा अपनी अविच्छिन्न चेवनपरम्पराका अनुभव करता हुआ विचारता है कि मैं वह चेतन द्रव्य हूँ जिसने अनादिकालसे उस प्रकार जाना है, जो आज इस प्रकारसे जान रहा है और जो आगे भी अनन्तकाल तक अन्य प्रकारसे जानता रहेगा। द्रन्यकी उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यात्मकता एकमेकक्षणे सिद्धं नश्यत् प्रागात्मना भवत् । सतारतिष्ठत्तदेवेदमिति वित्त्या यथेक्ष्यते ॥३४॥ द्रव्यं तथा सदा सर्व द्रव्यत्वात्तद्वदप्यहम् । विवर्तेनादिसन्तत्या चिद्विवतैः पृथग्विधैः ॥३५ ___'एक सिद्धद्रव्य जिस प्रकार एक ही क्षणमें पूर्व-पर्यायसे नष्ट होता हुआ, वर्तमान-पर्यायसे उत्पन्न होता हुआ और सद रूपसे सदा स्थिर रहता हुआ, 'यह वही है। इस प्रकारके ज्ञान (प्रत्यभिज्ञान) से लक्षित होता है, उसी प्रकार सारा द्रव्यसमूह उत्पाद, व्यय और ध्रौव्यरूप अनुभव किया जाता है। मैं भी एक (चेतनात्मक) द्रव्य हूँ अतः १ विद्यमानेन । २ ज्ञानेन । ३ नानाप्रकारैः।
SR No.010649
Book TitleAdhyatma Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1957
Total Pages137
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size4 MB
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