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________________ www सम्मति-विद्याप्रकारामाला केन्द्रित एवं बलवती होकर शीघ्र ही सफलताकी प्राप्ति होती है। धर्म्यध्यानके भेद-प्रभेदों, ध्यानके अंगों, ध्यानकी सामग्री तथा साधन-विधि और उसके फल आदिका विशेष वर्णन ध्यान-विषयक शास्त्रोंसे-तचानुशासन तथा ज्ञानार्यवादि जैसे ग्रंथोंसे भले प्रकार जाना जा सकता है। यहां प्रकृत विपयको समझने के लिए कुछ अत्यन्त उपयोगी वातोंको ही स्पष्ट किया गया है। मतिका लक्षण श्रुत्या निरूपितः सम्यक् शुद्धः स्वात्माञ्जसा यया। युक्त्या व्यवस्थाप्यतेसौ मतिरत्रानुमन्यताम् ॥७॥ _ 'श्रुतिके द्वारा सम्यक निरूपित शुद्ध स्वात्मा जिससे युक्ति-पूर्वक व्यवस्थापित किया जाता है उसे यहाँ-इस अध्यात्मशास्त्रम–'मति' मानना चाहिये। व्याख्या-गुरुवाणीने 'जिसका भले प्रकार निरूपण किया हो वह शुद्ध-स्वात्मा जिसके द्वारा युक्तिपूर्वक व्यवस्थापित अथवा नय-प्रमाणके बलपर संसिद्ध किया जाता है उसका यहाँ 'मति के नामसे निर्देश किया गया है । गुरुवाणी प्रायः 'उपदेश या आदेशके रूपमें होती है, उसमें कारण-विशेषके विना युक्तिवादके लिये स्थान
SR No.010649
Book TitleAdhyatma Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1957
Total Pages137
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size4 MB
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