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________________ अध्यात्म-रहस्य समान रूपसे प्रयुक्त हुआ है, जो उनकी ज्ञान-लक्ष्मी और भारती-विभूतिका घोतक है । अभन्योंको यह पद कभी प्राप्त नहीं होता, इसलिये भव्योंको लक्ष्य करके ही यहाँ निजपद प्रदानकी बात कही गई है और उसके द्वारा निमित्तकारणके माथ उपादानकारणकी भी आवश्यकता एवं अनिवार्यताको घोषित किया गया है। . इस तरह साधारण-सा प्रतीत होनेवाले इस मंगलपधमें भक्ति-योगका आध्यात्मिक रहस्य भरा हुआ है। नमः सद्गुरुवे तस्मै यद्वाग्दीप-स्फुटी-कृतात्। मार्गादारूढयोगःस्यान्मोक्षलक्ष्मीकटाक्षभाक्रं 'उस सद्गुरुको नमस्कार है जिसके वचनरूप दीपकके द्वारा स्पष्ट किये गये (योग)मार्गके कारण आरूढयोगीयोग-मार्ग पर चलना प्रारम्भ करनेवाला ध्यानी भव्यप्राणी-मोक्ष-लक्ष्मीके कटाक्षका भागी होता है-मोक्षलक्ष्मी प्रसन्न होकर उसे अनुरागमरी तिर्यकदृष्टि (तिरछीनज़र) से देखने लगती है और वह क्रमशः योगमें उन्नति करता हुआ उस लक्ष्मीको प्राप्त करनेमें समर्थ होता है।' व्याख्या-यहाँ सद्गुरुको नमस्कार करते हुए मोक्षलक्ष्मीकी प्राप्तिमें योगाभ्यासकी प्रधानताको घोषित किया है और साथ ही यह बतलाया है कि वह योगमार्ग सद्
SR No.010649
Book TitleAdhyatma Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1957
Total Pages137
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size4 MB
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