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________________ सन्मति - विद्या-प्रकाशमाला व्याख्या - यहाँ भव्योंका 'मनमान' विशेषण और उन्हें निजपद प्रदानकी बात दोनों ध्यानमें लेने योग्य हैं । इनमें भक्तियोगका रहस्य संनिहित अथवा गुप्त है । 'भजमान' विशेपणके द्वारा यह प्रकट किया गया है कि निज पद-प्रदानका कार्य उन्हीं भव्यजीवोंको होता है जो सदा सच्चे हृदयसे भक्तिमें अनुरक्त रहते हैं और इसलिए उस पदको प्राप्त करनेके सुपात्र होते हैं— अभक्त अथवा कपट-हृदय प्राणी उस पदकी प्राप्तिके योग्य नहीं होते । वादिराजसूरिने एकीभावमें यह बतलाया है कि 'शुद्ध ज्ञान और शुद्ध चारित्र के होते हुए भी यदि मुमुचुकी मुक्तिप्राप्तोंके प्रति उच्चकोटिकी भक्ति नहीं है तो वह मुक्तिके द्वारको, जिस पर सुदृढ महामोहकी मुद्रा ( मुहर ) को लिये हुए कपाट लगे हैं, खोलने में समर्थ नहीं हो सकता उच्चकोटिकी सच्ची सविवेक-भक्ति ही कभी धोखा न देनेवाली या फेल (असफल) न होनेवाली वह कुजी ('अवंचिका कु'चिका') है जो उसे खोलने में सदा समर्थ होती है' । अतः उस पद प्राप्ति के लिये भव्यका 'भजमान' होना २ * शुद्धे ज्ञाने शुचिनि चरिते सत्यपि त्वय्यनीचा भक्तिर्नो चेदनवधिसुखाऽवंचिका कु'चिकेयम् । शक्योद्घाटं भवति हि कथं मुक्ति - कामस्य पुंसो मुक्तेर्द्वार परिदृढ - महामोह-मुद्रा-कपाटम् ॥ १३ ॥
SR No.010649
Book TitleAdhyatma Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1957
Total Pages137
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size4 MB
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