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________________ प्रस्तावना चैत्यालयमें बैठकर पं० आशाधरजीने लगमग ३५ वर्ष तक एकनिष्ठाके साथ ज्ञानकी विशिष्ट-आराधना और साहित्यकी अनुपम-साधना की है । आपके प्रायः सभी उपलब्ध ग्रन्थोंकी रचना उक्त नेमिजिन-चैत्यालयमें ही हुई है । ___आपका जिनयज्ञकम्प (प्रतिष्ठासारोद्धार) नामका ग्रंथ वि० सं० १२८५ में बन कर समाप्त हुआ है, जिसकी प्रशस्तिमें उन बहुतसे ग्रन्थोंकी सूची दी गई है जो उससे पहले रचे जा चुके थे, और जिनमें १ प्रमेयरत्नाकर, २ भरतेश्वराभ्युदयकाव्य (सिद्धयडू),३ धर्मामृत (दो भागोंमें अनगार-सागारके मेदसे) ज्ञानदीपिका नामकी पंजिकासे युक्त, ४ अष्टाङ्ग हृदयोद्योत (वैद्यक), ५ मूलाराधनादर्पण, ६ अमरकोप-टीका, ७ क्रियाकलाप, ८ रौद्रट-काव्यालंकारटीका, सहस्रनाम सटीक,१० नित्यमहोयोत,११ रत्नत्रयविधान और १२ इप्टोपदेश-टीकाके नाम खास तौरसे उल्लेखनीय हैं । त्रिषष्ठिस्मृतिशास्त्रकी रचना सं० १२६२ में हुई, जिसमें श्रीजिनसेनके महापुराणके आधार पर चौबीस तीर्थंकरादि त्रेसठशलाका पुरुषोंका चरित्र संक्षेपमें दिया गया है। संवत् १२९६ में आपने सागारधर्मामृतकी * इनके अतिरिक्त आराधनासार-टीका और भूपाल-चतुर्विंशतिटीकाका भी उल्लेख प्रशस्तिकी टिप्पणीमें 'आदि' शब्दकी व्याख्याके अन्तर्गत पाया जाता है।
SR No.010649
Book TitleAdhyatma Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1957
Total Pages137
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size4 MB
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