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________________ अध्यात्म-रहस्य जिसे सद्गुरुके प्रसादसे श्रुति, मति, भ्याति और दृष्टि नामकी चार सिद्धियाँ क्रमशः प्राप्त हो जाती हैं (३)। इन चारों सिद्धियोंका परिचय करानेके लिये ग्रन्थमें इनका स्वरूप दिया है, सद्गुरुका भी स्वरूप दिया है और साथ ही यह प्रकट किया है कि ये सिद्धियाँ उस दर्शनज्ञानचारित्ररूप-परिणत शुद्धस्वात्माको प्राप्त होती हैं जो किसी के साथ राग, द्वेष तथा मोहको प्राप्त नहीं होता । वास्तवमें राग-द्वेष और मोह ये तीनों, जिनमें सारा ही मोहनीयकर्म समाविष्ट है (२७), अशुद्धिके बीन हैं और आत्म-विकासमें बाधक हैं। इनकी उपशान्तिसे आत्मामें शुद्धिकी प्रादुभूति होती है और वह शुद्धि उत्तरोत्तर-शुद्धिका कारण बनती है। इसीसे इन आत्म-शत्रुओंके विनाशार्थ उद्यमका उपदेश है, जो योग-साधनाके द्वारा ही सुघटित होता है। योग, ध्यान और समाधि ये तीनों प्रायः एकार्थक हैं। योगरूप दृष्टिसिद्धिके द्वारा परमात्मा अथवा आत्माकी परमविशुद्ध अवस्थाका साक्षात्कार होते ही ये रागादिक शत्रु खड़े नहीं रह सकते । स्वात्मामें शुद्ध चिद्रूपकी भावना तक इन शत्रुओंकी अनुत्पत्ति तथा विनाशका कारण होती है (२३)। जो योगी राग-द्वेष-मोहसे रहित अपने शुद्ध उपयोगको परम विशुद्धिको प्राप्त परमात्मा अथवा आत्माके शुद्धस्वरूपमें लगाना है वह आत्मशुद्धिको प्राप्त होता है (२५) और
SR No.010649
Book TitleAdhyatma Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1957
Total Pages137
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size4 MB
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