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________________ MMM પર अध्यात्म-रहस्य ही पर्यायके दो भेद किये है, जिनमें अर्थपर्यायको सूक्ष्म तथा प्रतिक्षण क्ष्यी और व्यंजनपर्यायको स्थूल तथा टिकाऊ प्रकट किया है । जीव और पुद्गल इन दो द्रव्योंमें दोनों प्रकारकी पर्याय होती हैं और शेष द्रव्योंमें केवल अर्थपर्याय ही रहती है । जो सहभावी गुण हैं वे ही द्रव्यके धौव्यरूप है और जो क्रममावी पर्याय हैं वे ही द्रव्यके उत्पाद-व्ययरूप हैं । इस दृष्टिसे द्रव्यके दोनों लक्षणोंमें परस्पर कोई तात्विक भेद नहीं है। संसारमें एक ही आत्मद्रव्य और वह भी सर्वथा अमेदरूप नहीं है, बल्कि पाँच मूल द्रव्य और भी हैं और वे हैं धर्म, अधर्म, आकाश, पुद्गल और काल । इनमें प्रथम तीन द्रव्य एक एक ही हैं, और पुद्गल तथा कालद्रव्य अनन्त है । आत्मद्रव्य भी अनन्त हैं और आत्मा को ही 'जीव' कहते हैं। नीववस्तु कोई अलग या ब्रह्मके प्रतिविम्वरूपमें नहीं है । एक आत्मा अथवा नीवद्रव्य असंख्यात-प्रदेशी है,धर्म और अधर्म द्रव्य भी असंख्यात, प्रदेशी हैं, आकाश अनन्तप्रदेशी है, पुद्गल अपने शुद्ध परमाणुरूपमें एक-प्रदेशी है-प्रदेशनचयसे रहित है, और स्कन्धरूपमें संख्यात, असंख्यात तथा अनन्त-प्रदेशी है। छहों द्रव्य अपने अपने विशेष गुण अथवा लक्षण-भेदसे परस्पर मित्र हैं, जिन सबको मित्रताके घोतक अलग
SR No.010649
Book TitleAdhyatma Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1957
Total Pages137
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size4 MB
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