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________________ ८ : तस्कर प्रभव का हृदय-परिवर्तन जम्बूकुमार तो अपने सुसज्जित कक्ष मे नव-वधुओ को प्रतिबोध प्रदान कर रहे थे और श्रेष्ठि प्रासाद मे शेष सभी स्वजनपरिजन, आगत अतिथि आदि विश्रामरत थे। इसी रात्रि में एक और घटना घटित हो गयी। प्रभव नाम का एक क्षत्रिय-पुत्र चौर्यकला मे अत्यन्त निपुण था । वह कुछ ऐसी विद्याओ का भी स्वामी था, जिनके प्रयोग से वह अपने चौर्यकर्म को सुगमता और सफलता के साथ सम्पन्न कर लिया करता था। उसका एक विशाल दल था और विपुल धन राशियो पर ही वह हाथ साफ किया करता था। प्रभव अपने कार्य मे इतना निपुण और दक्ष था कि वह कभी भी किसी की पकड मे नही आया । अपनी कला के इसी कौशल के आधार पर वह सारे देश मे विख्यात था। इसी रात उसने श्रेष्ठि ऋषभदत्त के प्रामाद को अपना लक्ष्य बनाया और वह स्वय अपने सहयोगियो के साथ भवन मे प्रविष्ट हो गया। उसने सर्वप्रथम अवस्वापिनी विद्या के प्रयोग से प्रासाद भर के समस्त प्राणियो को गहन निद्रा के अधीन कर दिया। उसे अपनी विद्या पर पूर्ण विश्वास था । अत इस विद्या का प्रयोग करने के पश्चात् उसे कभी उस प्रयोग की सफलता का परीक्षण करने की आवश्यकता ही अनुभव नही हुई । यहां भी उसने चिन्ता नही की और जांच करने का प्रयत्न
SR No.010644
Book TitleMukti ka Amar Rahi Jambukumar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni, Lakshman Bhatnagar
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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