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________________ ६० | मुक्ति का अमर राही : जम्बूकुमार चिन्तित हो गईं । एक श्रेष्ठि ने दूसरे से, दूसरे ने तीसरे श्रेष्ठि से विचार-विमर्श किया । आठो श्रेष्ठि-दम्पत्ति एकत्रित होकर विचार करने लगे । सुदीर्घ विचार विनिमय के पश्चात भी जब कोई मार्ग नही निकल पाया तो इन अभिभावको ने यही निश्चय किया कि अब इस प्रश्न का निर्णय स्वय कन्याओ पर ही छोड़ दिया जाय । निदान आठो कन्याएँ एक स्थल पर एकत्रित हुई और प्रस्तुत समस्या पर विचार करने लगी । यह समस्या सर्वाधिक रूप से इन्ही के लिए गम्भीर थी और इन्होने भी पूरी गम्भीरता के साथ ही इस पर मनन आरम्भ किया। सभी कन्याएँ व्यक्तिगत रूप से अपना-अपना दृष्टिकोण निर्मित कर चुकी थी । अव तो इन्हे किसी एक सयुक्त निर्णय पर आना था । एक कन्या ने विचारविमर्श के क्रम को आरम्भ करते हुए कहा कि बहनो । समस्या वास्तव मे बडी ही कठिन है, इसी पर तो हमारा भविष्य अवलम्बित है । अत पूरी सावधानी के साथ हमे कदम उठाना होगा । हमारे माता-पिता भी हमारे भविष्य को लेकर ही चिन्तित हैं । किन्तु मैं सोचती हूँ अव विचार करने और निर्णय करने की स्थिति है ही नही । हम लोग इस अवस्था को तो कभी का पार कर चुकी है । हमारा वाग्दान हो चुका है । हम भी जम्बूकुमार को मन ही मन पनि रूप मे स्वीकार कर चुकी हैं । अब भला इस प्रश्न पर सोच-विचार करने को शेप ही क्या बचता है । अब भी क्या इस पर कोई नवीन निश्चय किया जा सकता है । हमारा विवाह तो एक प्रकार से जम्बूकुमार के साथ ही हो गया है । केवल
SR No.010644
Book TitleMukti ka Amar Rahi Jambukumar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni, Lakshman Bhatnagar
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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