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________________ विवाह एवं पत्नियों को प्रतिबोध | ५९ विरुद्ध आचरण है। यदि इस सत्य से अवगत होकर भी वे इस विवाह को अस्वीकार नही करती तो इसके भावी परिणामो का दायित्व मुझ पर नहीं रहेगा। कन्याएं किसी भ्रान्ति मे नही रहेगी, तो फिर वह उनका स्वेच्छाधारित चुनाव होगा, जिसके लिए, उन्ही को सोच-विचार करना है और निर्णय लेना है । एक प्रातः जम्बूकुमार ने अपने आठ अनुचरो को बुलाया और उन्हें सन्देश लेकर आठों कन्याओ के पिताओ के पास भेज दिया । सन्देश में इस आशय का कथन था कि मैं आपकी कन्या से विवाह तो कर रहा हूँ, किन्तु विवाह के तुरन्त पश्चात् ही मैं दीक्षा ग्रहण कर लूंगा । इस सम्बन्ध मे मेरा निश्चय सुदृढ और अटल है, जिसमे परिवर्तन की कोई आशा नही रखी जा सकती। मेरे अभिभावको से इस विषय मे मुझे स्वीकृति मिल गयी है। अब बारी आपकी है कि अपने निर्णय पर पुनर्विचार कर ले । आप चाहे तो इस नवीन परिस्थिति मे आप अपनी कन्या के विवाह की स्वीकृति दे, चाहे तो इस सम्बन्ध को अब भी अस्वीकार कर दे। जब कन्याओ के पिताओ को यह सन्देश मिला तो उनके चरणो के नीचे से धरती ही खिसकने लगी । वे भौचक्के से रह गये। इस मम्वन्ध के विषय मे विचार-विमर्श के दौरान यह विन्दु तो कभी आया ही नहीं ! प्रमग बड़ा गम्भीर है, जिसमे उनकी पुत्रियो के भावी जीवन का सीधा सम्वन्ध है। श्रेष्ठियो ने सावधानी मे सन्देश की सूचना अपनी धर्मपत्नियो को दी । वे मी
SR No.010644
Book TitleMukti ka Amar Rahi Jambukumar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni, Lakshman Bhatnagar
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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