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________________ वैराग्योदय | २६ कोई प्रश्न अन-सुलझा नही रहेगा, अनुत्तरित नही रहेगा । आर्य सुधर्मास्वामी के आगमन से सर्वत्र उत्साह की एक लहर दौड पडी थी वे अपने विशाल श्रमण सघ के साथ गुणशीलक चैत्य मे विश्राम करने लगे थे। प्रतिदिन श्रद्धालु जनो का विशाल समूह एकत्रित होता, आर्यश्री के दर्शन-लाभ से शान्ति और पवित्रता का अनुभव करता और आपके वचनामृत से तृप्त होता । मन मे अनेकानेक जिज्ञासाएँ लिए जम्बूकुमार भी आर्य सुधर्मास्वामी की सेवा मे उपस्थित हुए । गुणशीलक उद्यान मे जुड़ी विशाल धर्मपरिषद को उद्बोधन प्रदान करते हुए आर्य सुधर्मास्वामी की भव्य आकृति और प्रभावोत्पादक वाणी से जम्बूकुमार के मन पर प्रथम प्रभाव ही अत्यन्त प्रबलता के साथ हुआ । मन्त्र-मुग्ध मे जम्बूकुमार ने श्रद्धा-भक्तिपूर्वक आर्यश्री की चरण-वन्दना की और भाव-विभोर अवस्था मे उन्होने आसन ग्रहण किया। धर्म-परिषद में उस समय महत्वपूर्ण एवं गम्भीर चर्चाएँ चल रही थी। आर्य सुधर्मा भगवान महावीर स्वामी के प्रवचनो की मार्मिक व्याख्या कर रहे थे। अपनी सरस, सुबोध और प्रभावोत्पादक शैली के कारण सुधर्मा स्वामी की वाणी मे एक विशिष्ट चमत्कार था। उनके कथन भक्तजनो के मानस को स्पर्श कर उन्हे पवित्र करते जा रहे थे। आर्यश्री अपनी देशना मे जीवअजीव, पाप-पुण्य, सवर-निर्जरा, मोक्षादि की तात्त्विक विवेचना कर रहे थे। कहना न होगा कि इस प्रवचनामृत का सर्वाधिक प्रभाव इस समय जम्बूकुमार पर हो रहा था। उनकी जो समस्याएँ थी, जो प्रश्न थे--उनके उत्तर और समाधान उन्हे सुधर्मा
SR No.010644
Book TitleMukti ka Amar Rahi Jambukumar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni, Lakshman Bhatnagar
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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