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________________ २६ | मुक्ति का अमर राही : जम्बूकूमार गूंजता रहेगा। कैमा मधुर वातावरण हो जायगा मेरे घर में । वह उस पल की कल्पना मे ही आनन्दित हो उठी। उसने अपने पति के समक्ष अपना मत प्रकट करते हुए यही कहा कि ये आठो कन्याएँ अत्यन्त सुशील, गुणवती और सुन्दर है । गुणो मे कौन सर्वश्रेष्ठ है-यह निर्णय करना भी असम्भव है । इनमे ने प्रत्येक अपने किसी न किसी गुण के कारण सर्वश्रेष्ठ कहला सकती है । ये कन्याएँ ज्ञानवती है, विदुपी है। मेरे मत में तो इन सभी के लिए हमे स्वीकृति भेज देनी चाहिए। अविलम्ब ही ऋपभदत्त भी अपनी पत्नी से सहमत हो गया। शीघ्र ही आठो श्रेष्ठियों के पास सम्मान महित उनके प्रस्तावो की स्वीकृति का सन्देश भिजवा दिया। राजगृह के नौ श्रेष्ठि-परिवारो मे हर्ष व्याप्त हो गया। मगलगान होने लगे, जिनकी गूंज एक साथ चौवीस हृदयो को थिरकाने लगी।
SR No.010644
Book TitleMukti ka Amar Rahi Jambukumar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni, Lakshman Bhatnagar
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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