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________________ चरक की कथा | १६७ 1 कनकश्री । बहुत काल पहले की चर्चा है कि एक देश के राजा को अश्व - पालन मे गहरी रुचि थी । उसकी घुडसाल मे भांतिभाँति के सुन्दर और अद्भुत अश्व थे । इनमे से एक घोडी बडी गुणवती थी और इस कारण वह राजा को सर्वाधिक प्रिय थी । राजा ने इस घोडी की पृथक व्यवस्था कर रखी थी । एक सेवक अलग से इसके लिए नियुक्त था, जो घोड़ी के खाने-पीने आदि का सारा प्रबन्ध किया करता था । L • इस सेवक पर राजा को बडा विश्वास था और इसी कारण उसे राजा द्वारा अपनी प्रिय घोडी की संभाल के लिए नियुक्त किया गया था । राजा के विश्वास को इस सेवक ने निभाया नही | कनकधी ! इस सेवक को स्वादिष्ट व्यजनो के सेवन की चाट लगी हुई थी । आय तो इसकी सीमित थी, जिसमे वह अपने परिवार का भरण-पोषण भी बडी कठिनाई से कर पाता था । ऐसी दशा मे अपनी रसना की तुष्टि के लिए उसने अनीति से काम लिया । घोड़ी के लिए राजा के भाण्डार से दाना आदि जो खाद्य सामग्री मिलती थी, वह उसकी कुछ मात्रा चुराया करता और बाजार मे सस्ते मोल मे बेच देता । इस दाम से वह अपने लिए स्वादिष्ट व्यजन खरीदा करता । ऐसा करते हुए उसकी आत्मा उसे धिक्कारती थी । उसके भीतर की अच्छाई उसे इस दुष्कर्म के लिए रोकती थी । किन्तु वह इस सबको अनसुनी कर देता और चोरी के क्रम को सतत रूप से बढाता रहा । अब तो वह घोडी के अधिकाश दाने का दुरुपयोग करने लगा। घोड़ी बेचारी प्राय. भूखी रहने लग गयी । इस परिस्थिति मे उसका दुर्बल हो
SR No.010644
Book TitleMukti ka Amar Rahi Jambukumar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni, Lakshman Bhatnagar
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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