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________________ ३ : बंग किसान की कथा : समुद्रश्री का प्रयत्न गृह-त्याग कर परिव्राजक बन जाने के लिए जम्बूकुमार सर्वथा कटिबद्ध थे । अपनी सकल्प-दृढता के लिए तो वे विख्यात हो ही चुके थे--अत. उनकी सभी नववधुएँ भयग्रस्त थी, व्याकुल थी। अपने आसन्न दुर्भाग्य से वे आत कित थी, किन्तु उन्होने आगत आपदा और भावी अनिष्ट के निराकरण के लिए समग्र शक्ति के साथ सचेष्ट रहने का सकल्प धारण कर लिया था। इन सभी पलियो ने जम्बूकुमार के मानस में एक उद्वेलन उत्पन्न करने की योजना बनाई थी। इन के सयुक्त प्रयास का प्रयोजन यही था कि जम्बूकुमार के मन मे विरक्ति के विरुद्ध तीव्र अनास्था का भाव जागरित कर दिया जाय और इस भांति उन्हे सासारिक सुखोप भोग के लिए प्रेरित किया जाय, उन्हे पुन जगत् की ओर उन्मुख कर दिया जाय। इन नववधुओ को अपने प्रयत्न मे सफल हो जाने का पूर्ण विश्वास था, जो उनके सामर्थ्य को कई गुना अधिक शक्तिशाली बना रहा था। अदम्य उत्साह के साथ पद्मश्री जम्बूकुमार को अपने मार्ग से च्युत करने का प्रयत्न कर चुकी थी एव उसकी पराजय सभी अन्य सखियो ने प्रत्यक्षत. देख ली थी, किन्तु इस पराभव को उन्होने मात्र सयोग ही समझा। पद्मश्री की यह हार शेप पलियो के लिए प्रखर प्रोत्माहन का कारण बन गयी थी।
SR No.010644
Book TitleMukti ka Amar Rahi Jambukumar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni, Lakshman Bhatnagar
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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