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________________ क्यामा रासा] बहुरि समसखां जो कह्यो, उत व्याहनको जाइ । जौ न रहौ करवार संग, डोला देहु पठाइ ॥४३५॥ यह वात वै करि गये, डोला दयो पठाइ । मीराजी जो कह्यौ हौ, मिल्यौ समै वहु आइ ॥४३६।। पातसाह बहलोलने, फत्तन लयो बुलाइ । निस दिन राखे निकट ही, छिन छिन प्यार जनाइ ।।४३७।। येक द्योंस बहलोलन, औसैं कह्यौ बिचार । हम तुम नातो चाहिए, बढे प्यारमें प्यार ॥४३८॥ अदल वदलको साक है, इछ्या पूजै प्रान । हम लोदी हैं जातके, जो तुम हो चहुवांन ॥४३९।। तवही कहयो जो फतननें, बदले साक न होइ । मेरे तो नाही सुता, अब अनव्याही कोइ ॥४४०॥ पातसाह मान्यौ बुरौ, फतन चढ्यौ रिसाइ । बहुरौ दिल्ली नां गयौ, बैठ्यौ अपने प्राइ ॥४४१॥ समसखांनुं चहुवानसौ, कहि पठयो पतिसाह । अदल वदल नातौ करै, जूहै जीवमें चाहि ॥४४२॥ सुनी बात यहु समसखां, बहुत बधाई कीन । उहि तनया अपसुत बरी, वहन आपनी दीन ॥४४३।। फत्तन जीयो जबहि लौ, नाहिंन बद्यो पठांन । सीस न नायो दिल्लीको, जानत सकल जहांन ॥४४४।। ॥सवैया ।। ताजंन अंस बिध्वंस धरा सबहि भूमिया भुज पानि पजाये। मारि लयो सुलतान हिसामदी, जाटू भिवानीके धूरि मिलाये। चिमनको हंन लीनौ नीसांन, भजाये है कांधिल जादौखिसाये। लूटि अांबेर लयो रिनथंभ, जहानमे फत्तनको जस छायो॥४४५।। श्री दीवान जलालखाँ के पुत्र १ दौलतखां, २ अहमद खा, ३ नूरखां, ४ फरीदखा, ५ निजामखां,
SR No.010643
Book TitleKyamkhanrasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma, Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherRajasthan Puratattvanveshan Mandir
Publication Year1953
Total Pages187
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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