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________________ ३६ [कवि जान कृत ॥दोहा॥ बहुत भयो जुध ना मिटै, तव बादै असू डरि। नारि काटि करवारसौ मुसकी दीनी डारि ।।४२३।। जैतपत्र लै फतिहखां, आये अपनी ठौर । बहुरि करी अांबेर पर, चाहुवांन दै दौर ॥४२४।। लूटि लई आंबेर सव, गये भोमियां भाजि । नीकी बिधिसौ लरि मुये, हौ जिनके मुह लाज ॥४२५।। आयो फतन फतिह कर, फूल्यो अंग न माइ । बहुरि भिवानी पर चल्यो, नीकी सैन वनाइ ॥४२६।। . जाइ भिवानी घेर ली, दल-बल अमित अपार । आगै जाटू जावले, भले लरे जूझार ॥४२७।। फतनने भिवानी मारी बंधकी करी धवल छंद।। उत जाटू चहुवान है, भयो जुद्ध पर्यो घमसांन है। . उडि धूरि गई असमांन है, कहूं दिष्ट न आवत भांन है ।।४२८।। चलै गोली बानं अपार ही, बहै जमधर अरु करवार ही। बरछी द्वै जा हिंदु सार ही, परे जाटू होइ सु मार ही ॥४२६॥ ॥दोहा॥ फतिह फतिहखां की भई, जाटू हारे अंत । लूटि भिवांनी बंधकी, आने पकर अनंत ॥४३०॥ नीके मारे जोध दल, फतिहखानुं चहुवांन । असौ कौन जु लरि सकै, कहौ भोमिया आंन ॥४३१।। जोधैक जियमे परि, करौ, फतनसौ सुक्ख । नातौ करिहौ ज्यौ मिटै, दुहू वोरको दुक्ख ॥४३२।। जोधै पठियो नारियर, फतन लीनौ नाहि । कांधिल बहु गुनहन्यौ हौ, रिस राखत मन मांहि ॥४३३।। महमदखां सुत समंसखां, तबहि जूझनू नांहि । उतहि नारियल लै गये, उनहू कीनी माहि ॥४३४॥
SR No.010643
Book TitleKyamkhanrasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma, Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherRajasthan Puratattvanveshan Mandir
Publication Year1953
Total Pages187
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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