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________________ क्यामखां रासा - परिशिष्ट फतहपुरकी बोहड़में पहुँच कर शार्दूलसिंहजी और राव शिवसिंहजीने नवावके ऊंटोंके समूहको वहां चरता हुआ पाया। उन्होंने उस समूहको घेरा । नवावने अपने सर्वेसर्वा काजीको वहां भेजा । काजी और शार्दूलसिंहजी वगैरहमें लड़ाई छिड गयी । अन्तमें काजी और ग्यारह कायमखानी उस स्थान पर मारे गये और बाकी सब भाग गये। उसी समयसे शार्दूलसिंहजी और राव शिवसिंहजी कायमखानियोंको नीचा दिखाने और उनकी भूमि उनसे छीन लेनेके लिए प्रयत्नशील हुए। अपने प्रयत्नमें लगे हुए उन्होंने अमएको संवत् १७८६में कायमखानियों से छीन कर, उस पर अपना अधिकार कर लिया। बादमें फतहपुर पर अपना अधिकार स्थापित करना चाहा, इसके लिए वे उचित अवसरकी बाट जोहने लगे। महबूबको अपना उत्तराधिकारी बनाना चाहनेके कारण नवाब सरदारखांसे अन्य कायम खानी सरदार मनमुटाव रखने लगे थे। कायमखानी चाहते थे कि अधिकार महबूबको न मिल कर कामयावखांको मिले; पर नवाब यह न चाहता था। उसने तो महबूबको ही उत्तराधिकार देना चाहा; यद्यपि वह कायमखानियोंके कहनेसे कामयावखांको दत्तक -पुत्र बना चुका था। __कायमखानी नवायसे बिलकुल असंतुष्ट हो गये । चूडी और बेसवाके कायमखानियोंने राव शिवसिंहजीके पास जा कर करबद्ध प्रार्थना की कि "श्राप फतेहपुरका अधिकार कामयावखांको दिला दें, आपकी सेवा में हम २५ गांव भेंट स्वरूप दे देंगे और फतेहपुरकी राज्य-व्यवस्था भी आपकी सलाहसे की जावेगी।" ___ कायमखानियोंकी प्रार्थना सुन कर राव शिवसिंहजीने काशलीके कुंवर रामसिंहको बुलवाया रामसिंह और प्रार्थी कायमखानियों को साथ ले कर संवत् १७८६में राव शिवसिंहजीने फतेहपुर पर चढ़ाई की। भयंकर लड़ाई हुई, दोनों तरफके अनेक वीर अाहत हुए और अनेक मारे गये । बादमें नवावने यह जान कर कि कायमखानियोंने ही शेखावतोंको साथ ले कर चढ़ाई की है बहराव शिवसिंहजीके चरणों में आ पडा। राव शिवसिंहजीने नवाबके लिए नौ हजार रुपया वार्षिक निश्चित किया और कामयाबखांको गहो पर बैठा दिया। १२-जवाब कामयाबखां (संवत् १७८६से १७८७ तक तदनुसार सन् १७२९से १७३० तक) नवाब सरदारखां, जो महबूबको राज्याधिकार देना चाहता था, उससे राव शिवसिंहजीने राज्यका अधिकार संवत् १८८६में कामयावखांको दिलवा दिया, जो नवायके छोटे भाई मीरखांका लड़का था और नवाबके द्वारा दत्तक भी स्वीकृत किया जा चुका था। __ नवाब कामयाबखां अपनेसे पूर्वके दो बवायोंकी भांति ही बलबुद्धिसे रहित था। वह राज्यकी व्यवस्था पर ध्यान न दे कर अपने पारामकी तरफ ही विशेष ध्यान देता था । हिताहितकी बातोंकी उसे पहचान न थी।
SR No.010643
Book TitleKyamkhanrasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma, Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherRajasthan Puratattvanveshan Mandir
Publication Year1953
Total Pages187
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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