SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 51
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परवर्ती नवाब ४१ फदनखां नामक एक लड़का नवाब सरदारखांके था, जो असमयमें नवाबकी जिन्दगी में ही मर गया था, इससे नवाब दुःखी रहने लगा ।' रात - दिन दुःख में डूबे रहनेसे उसे राज्य कार्य श्ररुचिकर हो गया था, जिससे उसने संवत् १७३७ तर्क २७ वर्ष ही राज्य करनेके बाद गद्दी छोड़ दी और राज्यका अधिकार अपने छोटे भाई दोनंदारखांके सुपुर्द कर दिया । १०- - नवाब दीनदारखां ( संवत १७३७ से १७६० तक तदनुसार सन् १६८० से १७०३ तक ) संवत १७३७में नवाव सरदारखाने, अपने पुत्रकी मृत्युसे" दुःखित होनेके कारण राज्यासन छोड़ कर अपने भाई दीनदारखांको गद्दी पर बैठाया । वह पहलेके नवाबोंकी तरह बहादुर और बुद्धिमान न था; बल्कि शक्तिहीन और मूर्ख था । ' 1 , अपने नामसे "दीनदारपुरा " नाम रख कर नवाब दीनंदारखाने एक गांव कुंकुं के रास्ते में बसाया । नवावके २ लड़के पैदा हुए जिनका नाम रसीदखां और मुजफ्फरखां रक्खे गये । कम कल होनेसे नवाब दीनदारखां अधिक दिन तक राज-काज न निभा सका, इससे उसके पोते सरदारखांने संवत् १७६० में उससे राज्यभार ग्रहण करके नवावी अपने हाथमें ले ली । ११ - नवाब सरदारखां (२) ( संवत् १७६० से १७८६ तक, तदनुसार सन् १७०३ से १७२९ तक ) नवाब दीनदारखांके राज-काज न संभाल सकनेके कारण उसके पोते सरदारखांको उसके जीते जी ही १७६० में गद्दी सौंप दी गयी । वह भी नवाब दीनदारखांके समान मूर्ख और बलहीन था । ऐयाश भी अव्वल दर्जेका था । उसने एक तेलिनको उसके रूप पर श्रासक्त हो कर रख लिया था, जिसका महल श्राज तक फतहपुर के किलेमें विद्यमान है, जो " तेलिनका महल" ऐसा कहा जाता है । तेलिनसे एक लड़का भी नवाबके हुआ, जिसका नाम महबूब था । 1 7 संवत् १७९२ में नवाब सरदारखांने किसी कारण वश क्रोधावेशमें श्राकर भोजराजजीके वंशज बरवाके केशरीसिंह और सुखसिंहको जानसे मरवा दिया। यह बात जब भोजराजनी वंशज वीरवर शार्दूलसिंहजीने सुनी, तो वे इतने क्रोधित हुए कि सिरसे पैर तक क्रोधाग्निसे तिलमिलाने लगे । उन्होंने तुरन्त ही राव' शिवसिहजी को साथ में ले कर १५० सवारों सहित फतहपुर पर चढ़ाई की। 1 } • • " 134 t *रसीदखाँ - नवाब दीनदारखांका बढा बेटा था । उसने अपने नामसे "रसोदपुरा " बसाया । उसके २ लड़के थे। सरदारखां और मीरखां । सरदारखां नवाब दीनदारखाने अपनी गद्दी पर बैठाया । उसका बड़ा बेटा था, इससे उसे ही
SR No.010643
Book TitleKyamkhanrasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma, Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherRajasthan Puratattvanveshan Mandir
Publication Year1953
Total Pages187
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy