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________________ क्यामखां रासा-भूमिका रचयिताके पिता अलिफखांने बड़ी श्रायु प्राप्त की थी, उसने अकवरसे ले कर अन्त तकके अनेक युद्धोंमें भी भाग लिया था। इसलिये उसके जीवनसे मुगल कालीन भारतका हम अच्छी तरह ज्ञान प्राप्त करते हैं। बादशाह अकबरने उसके नाम फतहपुरका पट्टा लिख दिया; किन्तु उसका अधिकार दिलानेके लिये शिकदार शेरखांको श्यामदास कछवाहेके विरुद्ध बलका प्रयोग करना पड़ा। अकबरके अन्तिम और जहांगीरके समय समयमें जितने उपद्व हुए उनकी अलिफखांके जीवनसे हम खासी सूची तय्यार कर सकते हैं। सलीमकी मेवाड़ पर चढ़ाईके समय अलिफखां सादडीका थानेदार नियुक्त हुा । जब दलपतने जहांगीरके विरुद्ध विद्रोह किया तो शेख कबीरके साथ अलिफखां भी दलपतके विरुद्ध भेजा गया । तुजुके जहांगीरीमें इस विद्रोहका अत्यन्त संक्षिप्त वर्णन है। उसके विशेष वर्णनके लिये हम आपके आभारी रहेंगे। स्वयं दिल्लीके पासके प्रदेश भी अनेक बार उपद्रव करते रहते थे । अलिफखांने जाटुरोको हरा कर भिवानी फतह की । मेवातमें तो उपद्रवोंको शान्त करनेके लिये उसे अनेक बार नियुक्त होना पड़ा । पाटौधि और रसूलपुरको उसके पुत्र दौलतखाने सर किया । दक्षिणमें अनेक सेनापतियोंकी अधीनतामें अलिफखांको मलिक अम्बरकी सेनाओंका सामना करना पडा। चार वार अलिफखांको कांगड़े भेजा गया, और वहीं सन् १४२६में वह विद्रोही पहाडियोंके विरुद्ध लडता हुआ मारा गया। ___अलिफखांसे पूर्वका वर्णन किसी पुराने कवित्त पर आश्रित है । उसका अंतिम भाग जानके समयके निकट होनेके कारण स्वभावतः प्रायः ठीक है। किन्तु प्रारम्भिक.भागमें अनेक भूले हैं, और संभवतः इसका भी यही कारण है कि यह पराना कवित्त भी कायमखांके मरणके अनेक वर्षों वाद लिखा गया था। नामसाम्यके कारण जो भूले हुई हैं उनका विशेष विवरण टिप्पणियों में दिया गया है, पाठक वहीं देखें । चौहानोकी उत्पत्तिको कथा रोचक है । उसकी पृथ्वीराजरासा आदिकी कथासे तुलना ऐतिहासिक दृष्टिसे लाभप्रद सिद्ध हो सकती है। वीर चौहान जाति वत्सगोत्रीय थी। जान वत्स ऋषिसे ही चौहानोंकी उत्पत्ति मानते हैं, चांद, सूरज श्रादिसे उन्हें मिलानेका जानने प्रयत्न नहीं किया। तुगलक, सय्यद, लोदी, सूर और मुगल वंशों पर रासामें पर्याप्त सामग्री प्राप्त होती है, जिसका ऐतिहासिक सावधानी पूर्वक प्रयोग कर सकते हैं। जोधपुर, बीकानेर आदि राज्योंके इतिहास पर भी जानकी लेखनी कुछ नवीन प्रकाश डालती है। अतः इस ऐतिहासिक रासाको प्रकाशित कर राजस्थान पुरातत्त्व मन्दिर प्रशस्य कार्य कर रहा है। हम व्यक्तिगत रूपसे उसके आभारी हैं; उसने हिन्दी भाषाकी एक कविकी रचना पाठकोंके संमुख प्रस्तुत करनेका हमें सुअवसर प्रदान किया है । दशरथ शर्मा
SR No.010643
Book TitleKyamkhanrasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma, Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherRajasthan Puratattvanveshan Mandir
Publication Year1953
Total Pages187
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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