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________________ १२२ [कवि जान कृत हुआ। राजा बसु, तिलोकचन्द आदिने अकवरकी अधीनता स्वीकार की। (देखें, अकवरनामा, तृतीय खंड, पृ. १०८१ और १११३)। पृष्ठ ५८, पद्यांक ६८५. सलीमका राणा पर आक्रमण......। सलीमका राणा पर यह आक्रमण सन् १५९९ ई. मे हुआ । राजा मानसिंह, शाहकुली आदि अनेक सेनापति उसके साथ गये। इस समय अलिफखांका पहली बार अकबरनामेमे वर्णन मिलता है। उसमें लिखा है:-"जब शाहजादा सलीम राणाको दंड देने के लिए भेजा गया, तब अपनी आरामपसन्दगी, मद्यप्रियता और बुरी संगतीके कारण कई दिन तक अजरोरमे ठहर कर वह उदयपुरकी ओर चला । राणाने दूसरी तरफसे निकल कर मालपुरा तथा अन्य उपजाऊ · इलाकोंको लूट लिया। इस पर शाहजादेने माधोसिंहको सेनाके साथ उधर भेजा । राणा पहाडोमें लौट गया और लौटते हुए उसने रातके समय शाही फौज पर हमला किया। राजकुली, लालबेग, मुवारिकबेग और आलिफखां टिके रहे, जिससे राणा लौट गया।" (अकबरनामेका अंग्रेजी अनुवाद; खंड ३, पृ. १११५)। पृष्ठ ५९, पद्यांक ६९१. ऊँटाले हो समसखां, उत आयो कर साथ...... डाक्टर गौरीशंकर हीराचंद ओझाने वीरविनोदके आधार पर लिखा है कि सलोमने मेवाड़में प्रवेश कर मांडल, मोही, मदारिया, कोसीथल, बागोर, ऊँटाला आदि स्थानों में थाने विठला दिये । ऊँटालेके गढ़में उसने बढे सैन्यके साथ क्यामखानी शम्सखांको नियत किया ।। ऊँटालेका युद्ध मेवाडके इतिहासमे विशेष प्रसिद्धि रखता है। चूंडावत और शक्तावत दोनों ही हरावलमें रहना चाहते थे। राणा अमरसिहने आज्ञा दी कि हरावल उसीकी रहेगी जो दर्गमें प्रवेश पहले करेगा। शक्तावत बल्लने किस प्रकार अपने शरीरको भालोंसे छिदवा कर हाथियों द्वारा दरवाजा तुडवाया और चूंदावत किस प्रकार सीढ़ियों द्वारा किले पर चढे यह पठनीय कथा है । जैतसिंह चुंडावत घायल हो कर नीचे गिर पड़ा। गिरते ही उसने अपने साथियोंको आज्ञा दी कि वे उसका सिर काट कर किलेमे फेंक दें। इस प्रकार चूंडावत ही सर्व प्रथम किले में पहुंच पाये, और हरावल उन्हींकी रही। राजप्रशस्ति महाकाव्यमें लिखा है कि--दिल्लीपतिका मृत्यवर क्यामखां इस युद्धमे मारा गया । क्यामनांसे आपाततः क्यामखानी शम्सका अर्थ लिया जा सकता है। किन्तु शम्सखो युद्धमे मारा नहीं गया। संभवतः काव्यका क्यामखां शुजातखांका पोता क्यामखां हो, जिसे तरबियतखांकी उपाधि मिली थी, और जो अकबरके राज्यके पांचवे वर्षमें अलवरका फौजदार बनाया गया। पृष्ठ ५९, पद्यांक ६९६. राइ मनोहर...... राय मनोहर लूणकरण शेखावतका पुत्र था । अकयरके समय मेवाड़, गुजरात आदिके युद्धाम इसने अच्छी ख्याति प्राप्त की थी। जहांगीरके राज्यके दूसरे वर्षमें, यह १५०० जात ६००
SR No.010643
Book TitleKyamkhanrasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma, Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherRajasthan Puratattvanveshan Mandir
Publication Year1953
Total Pages187
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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