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________________ १२० [कवि जान कृत बाबरी, इलियट और डाउसन, खंड ५, पृष्ठ २६३)। खानवाके युद्ध में इसने राणा सांगाका साथ दिया था। लगभग चौदहवीं शताब्दोके आरम्भसे उसके पूर्वज मेवातमें राज्य करते आये थे, और उन्होंने अंशतः ही दिल्लीके सुल्तानोंका प्रभुत्व स्वीकार किया था। बाबरने दिल्लीकी विजयके कुछ समय बाद मेवात पर आक्रमण किया । हसमखांने कुछ विरोधके बाद अधीनता स्वीकार की। बाबरने अलवरका दुर्ग और तिजारा अपने अफसरोको सौंप और अलवरका खजाना हुमायूको दिया, किन्तु हसनखांको भी उसने नाराज न किया। मेवातके बदले बाबरने कई लाखकी एक अन्य जागीर उसे दी । (वही, पृष्ठ २७३-४)। पृष्ठ ४५, पद्याङ्क ५३२. निरवान.... यह चौहानोंकी प्रसिद्ध शाखा है। इस समय नागौरका खां मुहम्मद प्रतापी था। शायद क्यामखानी उसकी तरफसे लडे हों। पृष्ठ ४५, पद्याङ्क ५३६. मुहब्बत साराखानी...... इतिहाससे इसका कुछ पता नहीं चलता। शेरशाहके सामन्तोंमे अनेक सरवानी थे। शायद उनमेसे किसीसे मतलब हो । पृष्ठ ४७, पद्याङ्क ५७३. ममनू...... मंझनूमें क्यामखानियोंकी एक शाखा राज्य करती थी। रासामें इसका बार बार जिक्र है। उसकी वंशावली इस प्रकार है : क्यामखां मुहम्मदखां - - मुबारक फतहखां गम्सखां कमालखां साहवरखा मुहम्मदखां भीखनखां महावतखां खिदरखां पृष्ठ ४८, पद्यांक ५८१. नाहरसांसे बीकानेरके राव लणकरणकी बेटीका विवाह...... रासाने लिखा है कि अपने जीते ही लूणकरणने अपनी बेटी नाहरसांग्से विधाहनेका वचन दिया था। जो राजपूत क्यामसानियोंसे कर मांगता और शायद लेता भी था, वह उन्हें बेटी देनेका वचन दे, यह संभव प्रतीन नहीं होता। पृष्ठ ४९, पद्यांक ५८८. नाहरखांका महल चिनवाना...... इसका सम्बत् १५९३ भादया सुदी अष्टमी है । यह क्यामन्यानी इतिहासको पुनः एक
SR No.010643
Book TitleKyamkhanrasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma, Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherRajasthan Puratattvanveshan Mandir
Publication Year1953
Total Pages187
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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