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________________ ११२ [ कवि जान कृत रासाके रचयिताने केवल मुहम्मद और महमूदके नाम दिये हैं। संभव है कि क्यामखांका मुख्य कार्यकाल १३८८ से १४१३ का यही अशांतिका समय रहा हो। पृष्ठ १६, पद्यांक १८२. तब नसीरखां पुत्र उहि, और गही ततकाल ।...... नसीरखांसे मतलब संभवतः नासिरुद्दीन महमूदसे है। इसके लिये हमारा मल्लूखां पर टिप्पण देखें । यह कुछ समय तक दिल्लीका नाममात्र सुल्तान था। पृष्ठ १६, पद्यांक १८५. मल्लूखां चेरौ हतो...... मल्लखां दीपालपुरके सूबेदार सारंगखांका भाई और सुल्तान महमूद तुगलकके समयका प्रभावशाली सरदार था। अपने प्रतिद्वन्दी सादतखांसे विद्वेषके कारण जय सुल्तान महमूद वयाना जाता हुआ ग्वालियर पहुँचा तो मल्लखांने एक षडयंत्रकी रचना की । भेद खुलने पर मल्लखांके अनेक साथी मारे गये; किन्तु स्वयं मल्लूखां वच निकला। दिल्ली पहुंच कर उसने मुकर्रबखां नामके अन्य प्रभावशाली सरदारके यहाँ आश्रय ग्रहण किया और उसकी सहायतासे केवल क्षमा ही नहीं, इकवालखांकी पदवी भी सुल्तानसे प्राप्त की। सादतखां भी मौन न रहा। कई अमीरोंको अपने पक्षमें कर फिरोजशाहके एक पुत्रको उसने नसरतशाहके नामसे गहीनशीन किया। जून सन् १३९८ में, मल्लूखां नसरतशाहसे जा मिला और कुरान पर शपथ खाकर उसे दिल्ली ले आया । दो दिनके वाद मल्लूखांने नसरतशाह पर धोखेसे हमला किया और उसे पहले फिरोजाबाद और फिर पानीपतकी तरफ भगा दिया। अपने शरणदाता मुकर्रबखांको भी इसी तरह उसने धोखा दिया, और उसे मार कर महमूद तुगलकके नाम पर, कुछ समय तक राज्य-शासन अपने अधिकारमें रखा। इसी साल तिमूरने भारत पर आक्रमण किया । मल्लूखांको हराना उसके लिये बांये हाथका खेल था। सुल्तान महमूदने गुजरातमें शरण ली । मल्लखां बरान (बुलन्दशहर) भाग गया। वहां भी उसने किसी अंशमें अपना आधिपत्य जमाया, और अपने कुछ प्रतिद्वन्दियोंको धोखेसे मारा । सन् १४०५ में दिल्ली लौट कर मल्लूखांने सुल्तान महमूदको वापिस बुलाया और उसे एक महलमे कैद कर उसके नामसे राज्य किया । एक साल बाद सुल्तान महमूदने कन्नौजमें अपना डेरा जमाया। सन् १४०४ में मल्लखांने सय्यद खिज्रखां पर चढ़ाई की और पाकपट्टनके निकट युद्धमे मारा गया। उसके जीवनकी उपर्यक्त घटनाओंसे स्पष्ट है कि मल्लूखां वास्तव में पक्का ईमान था। किन्तु रासाकारने यह यात माननेमें भूल की है कि उसने नासिर महमूद शाहका वध किया था। उसने केवल जहाँ तक संभव हुआ उसे कैद रखा। यह यहुत संभव है कि मल्लूखांकी येईमानीसे रुष्ट होकर सन् १४०१ में क्यामखांने उसका विरोध क्रिया हो । (मल्लयांके विशेप विवरणके लिये देखें, तारीख मुयारकशाही, इलियट एण्ड दाउसन, खंड ४, पृष्ठ ३२-४०)। पृष्ठ १९, पद्यांक २२२-२४. तक का वर्णन...... रासाने इस पृष्ठके वर्णनमें क्यामखांको प्रायः उत्तर भारतका सन्नाट बना दिया है। यह वर्णन स्पष्टतः अतिशयोक्ति-पूर्ण है।
SR No.010643
Book TitleKyamkhanrasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma, Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherRajasthan Puratattvanveshan Mandir
Publication Year1953
Total Pages187
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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