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________________ ४४ दौलतलाइ मंगाइक, ज्या बाघ हमारा प्रा [कवि जान कृत आवत आवत फतिहपुर, इक दिन निकस्यौ आइ। मिलि दीवांनसौ यों कह्यौ, येफ मंगावहु गाइ ॥५१८॥ भूखौ है दिन तीनको, बाघ हमारौ आज । दीजै गाइ मंगाइक, ज्यौ पूरै मन काज ॥५१६॥ दौलतखां दीवाननें, दीनी गाइ मंगाइ। देखौ मेरे देखतै, बछुवा कैसे खाई ॥५२०॥ मारनको बछुआ उठ्यौ, निकट तकी जब गाइ। हाक दई दीवांनन, सिघ सक्यौ नहिं जाइ ॥५२१॥ बाघ चलै उठि गाइक, फिर हटकै दीवांन । उहि ठौर ठाढ़ौ रहे, गऊ न पावै खांन ॥५२२॥ तब बाबरनै यौ कह्यौ, खां देखह जु गाइ । जौ तुम यासौं यों करी, तो..."रि जाइ ॥५२३॥ डिस्ट करेरी सापुरस, सिंघ न सके सहार। मद कुजरको सूकि है, सुनिकै सुभट हकार ॥५२४॥ बाबर जब इतते गयो, देख्यो अलवर जाइ । हसनखांनकै कटककै, देखि रह्यो भरमाइ ॥५२५।। उतते ढीलीको गयौ, तक्यों सिकंदर साह । पाछै काबिलको गयो, सकल हिद अवगाह ॥५२६॥ पूछन आये लोग सब, ढिली मंडलकी बात । तब बाबरनैं यों कह्यौ, तकी तीनही जात ॥५२७।। तीन पुरष असे तके, सगरे हिदसतान । तिनकी सम को जगतमै, डिस्ट न आवै आन ॥५२८॥ येक सिकंदर आपही, ढीलीको पतिसाह । पुनि मेवाती हसनखां, जाकै कटक अथाह ॥५२६॥ तीजौ दौलतखा तक्यौ, नगर फतिहपुर आइ । जाके डरते वाघहूं, मार सक्यो ना गाइ ॥५३०॥
SR No.010643
Book TitleKyamkhanrasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma, Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherRajasthan Puratattvanveshan Mandir
Publication Year1953
Total Pages187
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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