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________________ १३ आध्यात्मिक पत्र रह-रह कर विकल्प होता रहता है कि कमसे कम एक दो वर्ष निरन्तर अलौकिक सत्पुरुषके सहवासमे रहना होवे, परन्तु प्रारब्ध अभी ऐसा नही दिखता है । विहारमे जूनागढ़ आदिका योग शायद नही है। ___ मुझे व्यावहारिक अनुकूलता रहा करे, ऐसी आपकी सद्भावनाओको मै भलीभॉति समझता हूँ; कारण अबके आपके अधिक नज़दीकमे रह चुका हूँ व आपके प्रतिके मेरे विकल्प इसके साक्षी होते रहते है। फिर भी ऐसी भावनाओका मुख्यदृष्टि स्वीकार नहीं करती, सहज ही निषेध वर्तता जाता है । भावना एक समयकी व उस ही समय 'हम' इससे अधिक । स्वाभाविक न होनेसे एक दूसरेके आश्रित, विचित्रता धरती हुई राग-द्वेषमे परिणत हो जाये या वीतरागतामे, ऐसा स्वभाव है ; राग भी नित्य नही रहता। ___ अहो! बिना विकल्पका कोरा आनन्द ही आनन्द ! निकाली गुब्बारेको पूर्ण फुलाये बिना (विकसित किये बिना) अव एक क्षण भी चैन नही है ! ध्यानस्थ अवस्थामे बैठा हुआ, अथाह ज्ञानसमुद्र व उसमे सहज केलि ! ऐसा अनुभव मानो 'मै ही मै हूँ,' आनन्दकी घूट पिये जा रहा हूँ - अरे रे ! वृत्ति आनन्दसे च्युत होने लगी। पर वाह रे पुरुषार्थ ! तूने साथ रही उग्रताका संकल्प किया, मानो अथाहकी थाह सदैवके लिये एकबारमे ही पूरी ले लगा। प्रदेश-प्रदेश व्यक्त कर देगा। सहज आनन्दसे एक क्षण भी नही हटने देगा। पर अरे योग्यता ! तूने पूर्णताके संकल्पका साथ नही देकर अन्तमे च्युत करा ही तो दिया, तो फिर इसका दण्ड भी भुगतना पड़ेगा। बहिनोकी सद्भावनाएँ देखकर उनकी इच्छानुसार अपनी व्यावहारिक अनुकूलता आदिका समाधान भी करना होगा । संक्षेपमे बात यह है कि आर्थिक स्थिति पहलेसे साधारणतया अच्छी है । सोनगढ समय पर पहुंचनेके वास्ते यहॉसे रवाना होने हेतु टिकट आदिका प्रबन्ध हो गया था, देहली आदि तार भी दिये थे । हमारे यहाँ का मुनीम एक होशियार व्यक्ति है, परन्तु पैसेके कार्यमे कच्चा है । रवाना होने की पहली रात मालूम हुआ कि पॉच-चार जगहसे उगाहीकी रकम लेकर चुपचाप निजीकार्यमे उसने खर्च कर दी है। स्थितिको काबूमे करनेका विकल्प हो गया । रुकना हो
SR No.010641
Book TitleDravyadrushti Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVitrag Sat Sahitya Prasarak Trust
PublisherVitrag Sat Sahitya Trust Bhavnagar
Publication Year
Total Pages261
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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