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________________ [२५] ऐसा वतला दिया है कि उसके अवलम्बनसे सहज परम अनाकुलता उत्पन्न होती रहती है।" - (पत्रांक . ५; कलकत्ता | २८-१०-५२) 0 "जिस आत्मद्रव्यमे परिणाम मात्रका अभाव है उसमे जम गया हूँ। परिणमन सहज, जैसा होता है, होने दो; हे गुरुदेव ! आपके इन वचनोने अपूर्व निश्चलता पैदा कर दी है ।" - ( पत्रांक : १९; कलकत्ता / २३-३-५६) "राग टूटना निश्चित है क्योकि श्रद्धाने राग-अरागरहित स्वभावका आश्रय लिया है व वीर्यकी क्षण-क्षण उधर ही उधर सहज उन्मुखता होनेसे ज्ञान-आनंदमयी अरागी परिणाम ही वृद्धिगत होगे, यह नियम प्रत्यक्ष अनुभवगम्य है।" - (पत्रांक : १९; कलकत्ता / २३-३-५६) D "यहाँ तो पूज्य गुरुदेवने आत्मगढ़मे वास कराकर प्रसाद चखाया है; अतः क्षणिक विकल्प भी सहज विस्मरण होते रहते है । कहता हूँ कि : हे विकल्पांश ! तेरे संग अनादिसे दुःख अनुभव करता आया हूँ, अव तो पीछा छोड़ । यदि कुछ काल रहना ही चाहता है तो सर्वस्व देनेवाले परम उपकारी श्री गुरुदेवकी भक्ति-सेवा-गुणानुवादमे ही उनके निकट ही वर्त !" - (पत्रांक . ४२; कलकत्ता | २१-८-६३ ) * भावाभिव्यक्ति-क्षमता : ' निर्विकल्पदशाके क्षणोमे वर्तित विविध गुणोके पर्याय भावोका ज्यो का त्यो सूक्ष्म विश्लेषण प्रायः कही पढ़नेमे नही मिलता है। और वस्तुस्थिति भी यही है कि निर्विकल्पदशाको विकल्पगम्य करके उसे लेखबद्ध करना ज्ञानीकी विशिष्ट सामर्थ्यका ही द्योतक होता है। निम्नांकित उद्धृत पत्रांश श्री सोगानीजीकी उक्त क्षमताका प्रमाण है: - "अहो ! बिना विकल्पका कोरा आनंद ही आनंद ! त्रिकाली
SR No.010641
Book TitleDravyadrushti Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVitrag Sat Sahitya Prasarak Trust
PublisherVitrag Sat Sahitya Trust Bhavnagar
Publication Year
Total Pages261
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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