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________________ (ड ) किये जो हीराचदभाई ने छपने के पहले ही देख लिये थे। इसके बाद बहुन वर्षों तक अागे के अनुवाद का काम मेरी अन्यान्य प्रवृत्ति के कारण स्थगित था। पर अाखिर को बाकी के दो कर्मग्रन्थो का हिंदी अनुवाद भी तयार हो ही गया । पञ्चम कर्मग्रन्थ का अनुवाद तो प० कैलासचद्रजीने किया और प्रस्तुत छठे कर्मग्रन्थका अनुवाद प० फूलचद्रजी ने किया है। पचम और पष्ठ इन दोनो हिंदी अनुवादा को भी छपने के पहले श्रीयुत हीरामाई ने पूरी सावधानी से देख लिया और अपनी व्यापक ग्रन्थोपस्थिति 'तथा सक्ष्म मूझ से अनेक स्थलो में सुधार सचित किये । उनके सुझाये हुए मुधार इतने महत्त्व के और इतने सच्चे थे कि जिनको देखकर पडित कैलाशचढजी तथा पडिन फूलचंदजी जैसे कर्मशास्त्री को भी होगचदभाई केमानात परिचर के बिना ही उनकी शास्त्र-निष्ठा की ओर आकर्षित होते मैंने पाया। मैने जैन समाज के जुदे जुदे फिरको में प्रसिद्ध ऐसे अनेक कर्मशास्त्रियों को देखा है, पर श्रीयुन हीराचदमाई जैसे सरल, उदार और मेवापगयण चेता कर्मशास्त्री विरल ही पाये हैं। आज वे अहमदाबाद में रहते है और जैन प्राच्यविद्या के अध्ययन, अध्यापन श्रोर सशोधन के उद्देश्य से स्थापित एक सस्था मे अपने धर्मबन्धु प० भगवानदास के माथ अध्यापन कार्य करते हैं। उनकी धर्मभीरुता और आर्थिक सतुष्टि एक सच्चे धर्मशास्त्रके अभ्यासी को शोभा देनेवाली है जो इस युग में विरल होने के कारण अनुकरणाय है। -सुखलाल सघवी
SR No.010639
Book TitleSaptatikaprakaran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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