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________________ ૨૮૮ । सप्ततिकाप्रकरण: प्रमत्तसंयतके दो बन्धस्थान होते हैं-२८ और २६ । सो इनका विशेष स्पष्टीकरण देशविरतके समान जानना चाहिये। ___यहाँ उदयस्थान पाँच होते हैं-२५, २७, २८ २९ और ३० । ये सब उदयस्थान आहारक संयत और वैक्रियसंयत जीवोके जानना चाहिये। किन्तु ३० प्रकृतिक उदयस्थान स्वभावस्थ संयतोके भी होता है। इनमेंसे वैक्रिय संयत और आहारकसयतोके अलग-अलग २५ और २७ प्रकृतिक उदयस्थानोमेंसे प्रत्येकके एक एक २८ और २६ प्रकृतिक उदयस्थानोके दो दो और ३० प्रकृतिक उदयस्थानका एक एक इस प्रकार कुल १४ भंग होते है। तथा ३० प्रकृतिक उदयस्थान स्वभावस्थ जीवोके भी होता है सो इसके १४४ भंग और होते है। इस प्रकार प्रमत्त संयत के सब उदयस्थानो के कुल १५८ भग होते हैं। तथा यहां सत्तास्थान चार होते हैं-९३, ६२, ८६ और ८८। इस प्रकार प्रमत्तसंयतमे बन्ध उदय और सत्तास्थानोका विचार किया। अब इनके संवेधका विचार करते हैं--प्रकृतियोका बन्ध करने वालेके पूर्वोक्त पांचो उदयस्थानोमेसे प्रत्येकमें १२ और ८८ ये दो दो सत्तास्थान होते हैं। उसमे भी आहारक संयतके नियमसे १२ की ही सत्ता होती है, क्यों कि आहारक चतुष्ककी सत्ताके विना आहारक समुद्धात की उत्पत्ति नहीं हो सकती किन्तु वैक्रियसयतके ९२ और दोनों की सत्ता सम्भव है। जिस प्रमत्त संयतके तीर्थकर प्रकृतिकी सत्ता है वह २८ प्रकृतियोंका बन्ध नहीं करता, अतः यहां ६३ और ८९ की सत्ता नहीं प्राप्त होती। तथा २९ प्रकृतियोका बन्ध करनेवाले प्रमत्तसंयतके पांचो उदयस्थान सम्भव हैं और इनमेंसे प्रत्येकमे ९३ और ८९ ये दो दो सत्तास्थान होते हैं। विशेष इतना है कि आहारकके ९३ की और बैक्रियके दोनो
SR No.010639
Book TitleSaptatikaprakaran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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