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________________ गुणस्थानोंमें नामकर्मके संवेध भंग २८७ अब इनके सवेधका विचार करते हैं-यदि देशविरत मनुष्य २८ प्रकृतियोका वन्ध करता है तो उसके २५, २७, २८, २९ और ३० ये पॉच उदयस्थान और इनमेंसे प्रत्येकमें ९२ और ८८ ये दो सत्तास्थान होते हैं। किन्तु यदि तिर्यच २८ प्रकृतियोंका बन्ध करता है तो उसके ३१ सहित छह उदय स्थान और प्रत्येकौ ९२ और ८८ ये दो दो सत्तास्थान होते हैं। तथा २६ प्रकृतियो का बन्ध देशविरत मनुष्यके होता है। अत इसके पूर्वोक्त पॉच उदयास्थान और प्रत्येक उदयस्थानमें ९३ और ८६ ये दो दो सत्तास्थान होते हैं। इस प्रकार देशविरतके सामान्यसे प्रारम्भके ५ उयस्थानों में चार चार और अन्तिम उदयस्थानमें दो कुल मिलाकर २२ सत्तास्थान होते हैं। देशविरतमै बन्ध, उदय और सत्तास्थानोंके सवेधका ज्ञापक कोष्ठक। [४२ 1 बन्धस्थान भग उदयस्थान भंग । सत्तास्थान ६२८८ 00mm ६२,८ ६२,८८ ६२. - २६ | ८ ६३.८४ ६३,८९ ६३, AAAAA -
SR No.010639
Book TitleSaptatikaprakaran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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