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________________ २६० सप्ततिकाप्रकरण तथा उपशान्तमोहमें २८, २४ और २, ये तीन सत्त्वस्थान होते हैं। यह उक्त गाथाका सार है। अब प्रसगानुसार संवेधभंगोंका विचार करते हैं - मिथ्यात्वमे २२ प्रकृतिक बन्धस्थान और ७, ८, ९ तथा १० प्रकृतिक चार उद्यम्यान हैं। सो इनमेंसे ७ प्रकृतिक उदयस्थानमें एक २८ प्रकृतिक सत्त्वस्थान ही होता है किन्तु शेष तीन उदयस्थानोमें २८, २७ और २६ ये तोनों सत्त्वस्थान सम्भव हैं। इस प्रकार मिथ्यात्वमें कुल सत्त्वथान १० हुए। नावाननमें २१ प्रकृतिक वन्धस्थान और ७, ८ और इन तीन उदयल्यानोंके रहते हुए प्रत्येकौ २८ प्रकृतिक सत्त्वस्थान है। इस प्रकार यहाँ ३ सत्त्वस्थान हुए। मिश्रौ १७ प्रकृतिक वन्धम्थान तथा ७.८ और ६ इन तीन उदयस्थानोके रहते हुए प्रत्येकी २८, २७ और २४ ये तीन सत्त्वत्थान होते हैं। इस प्रकार यहाँ कुल ९ सत्त्वस्थान हुए। अविरत सम्यग्दृष्टि गुणस्थानमे एक १७ प्रकृतिक वन्धन्धान तथा ६७,८ और ये चार उदयस्थान होते हैं। सो इनमे से ६ प्रकृतिक उदयस्थानमे ८, २४ और २१ ये तीन सत्त्वस्थान होते हैं। और ८ मेंसे प्रत्येक उदयस्थानमें २८, २४, २३, २२ और २१ ये पॉच-पाँच सत्वस्थान होते हैं। तथा ६ प्रकृतिक उदयस्थानमें २८, २४, २३ और २२ ये चार सत्वस्थान होते हैं। इस प्रकार यहाँ कुल १७ सत्त्वस्थान हुए। देशविरतमे १३ प्रकृतिक बन्धस्थान तथा ५,६,७ और ८ चे चार उदयम्थान होते हैं। सो इनमेंसे ५ प्रकृतिक उदयस्थानमें २४, २१ और २१ चे तीन सत्त्वस्थान होते हैं। ६ और ७ मेसे प्रत्येक उन्यस्थानमें २८, २४, २३, २२ और २१ चे पाँच-पाँच सत्त्वस्थान होते हैं तथा आठ प्रकृतिक उदयस्थानमें २८, २४, २३ और २२ ये चार सत्त्वस्थान होते हैं।
SR No.010639
Book TitleSaptatikaprakaran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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