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________________ गुणस्थानोंमे मोहनीयके सत्त्वस्थान २५९ इस प्रकर मोहनीयके प्रत्येक गुणस्थान सम्बन्धी उदयस्थान विकल्प और पदवृन्दोंको वहाँ सम्भव योग, उपयोग और लेश्याओंसे गुणित करने पर उनका कुल प्रमाण कितना होता है इसका विचार किया। १४. गुणस्थानों में मोहनीयके संवैधभंग अब सत्तास्थानोका विचार क्रम प्राप्त हैतिराणेगे एगेगं तिग मीसे पंच चउसु नियट्टिए तिनि । एक्कार वायरम्मी सुहमे चउ तिन्नि उपसंते ॥४८॥ अर्थ-मोहनीय कर्मके मिथ्यात्वमें तीन, सास्वादनमे एक, मिश्रमें तीन, अविरत सम्यग्दृष्टि आदि चार गुणस्थानोमें पॉच पाँच, अपूर्वकरणमे तीन अनिवृत्तिकरणमें ग्यारह, सूक्ष्मसम्परायमें चार और उपशान्तमोहमें तान सत्त्वस्थान होते हैं । विशेषार्थ-किस गुणस्थानमें कितने सत्त्वस्थान होते हैं और उनके वहाँ होनेका कारण क्या है इसका विचार पहले कर आये हैं। यहाँ सकेनमात्र किया है। मिथ्यात्वमें २८, २७ और २६ ये तीन सत्त्वस्थान होते हैं। सास्वादनमें २८ प्रकृतिक एक हो सत्त्वस्थान हाता है। मिश्र २८, २७ ओर २४ ये तीन सत्त्वस्थान हाते है। अविरत सम्यम्हष्टि आदि चार गुणस्थानों से प्रत्येकमे २८, ०४, २३, २२ और २१ ये पाँच सत्त्वस्थान होते हैं । अपूर्वकरणमें २८, २३ ओर २१ ये तीन सत्त्वस्थान होते हैं। अनिवृत्तिकरणमें २८, २९, २१, १३, १२, ११,५,४, ३,२ और १ ये ग्यारह सत्त्वस्थान होते हैं। सूक्ष्मसम्परायमें २८ २४, २१, और १ ये चार सत्त्वस्थान होते हैं। (१) तिण्णेगे एगेग दो मिस्से चदुसु पण णियट्रोए । तिणि य थूलेकारं हमे चत्तारि तिणि उबसते ॥ -गा० कर्म० गा० ५०६ ।
SR No.010639
Book TitleSaptatikaprakaran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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