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________________ - सप्ततिकाप्रकरण प्रकृतिक सत्त्व तथा चार प्रकृतिक वन्ध पाँच प्रकृतिकं उदय और नौ प्रकृतिक सत्त्व प्राप्त होते हैं। किन्तु ऐसा नियम है कि निद्रा या प्रचलाका उदय उपशमश्रेणीमें ही होता है क्षपश्रेणीमें नहीं, अतः एक तो क्षपकश्रेणीमे पांच प्रकृतिक उदयरूप भंग नहीं प्राप्त होता और दूसरे अनिवृत्ति करणके कुछ भागो के व्यतीत होने पर स्त्यानर्द्धित्रिकका सत्त्वनाश हो कर छहकी ही सत्ता रहती है, अत. अनिवृत्तिकरणके अन्तिम संख्यात भाग और सूक्ष्मसम्पराय इन दो क्षपक गुणस्थानोमे चार प्रकृतिक बन्ध, चार प्रकृतिक उदय और छह प्रकृतिक सत्त्व यह एक भंग प्राप्त होता है। चाहे उपशम श्रेणीवाला हो या क्षपकश्रेणीवाला समीके दसवे गुणस्थानके अन्तमें दर्शनावरणका बन्ध विच्छेद हो जाता है इसलिये आगेके गुणस्थानोंमे बन्धकी अपेक्षा दर्शनावरण कर्मके भंग नहीं प्राप्त होते किन्तु उपशान्तमाह यह गुणस्थान उपशमश्रेणी का है अतः इसमें उदय और सत्ता उपशमश्रेणीके दसवें गुणस्थानके समान बनी रहती है और क्षीणमोह यह गुणस्थान आपकश्रेणीका है इसलिये इसमे उदय और सत्ता क्षपकरेणीके दसवे गुणस्थानके समान वनी रहती है । अत. उपशान्त मोह गुणस्थानमें चार प्रकृविक उदय और नौ प्रकृतिक सत्त्व तथा पांच प्रकृतिक उदय और नौ प्रकृतिक सत्त्व ये दो भंग प्राप्त होते हैं। और क्षीणमाह गुणस्थानमें चार प्रकृतिक उदय और छह प्रकृतिक सत्व यह भंग प्राप्त होता है। किन्तु जव क्षीणमोह गुणस्थानमें निद्रा और प्रचलाका उदय ही नहीं होता है तब इनका क्षीणमोह गुणस्थानके अन्तिम समयमे सत्त्व नहीं प्राप्त हो सकता, क्यों कि ऐसा नियम है कि जो अनुदय प्रकृतियां होती हैं उनका प्रत्येक निपेक स्तिवुकसक्रमणके द्वारा सजातीय उदयवती प्रकृतिरूप परणमता जाता है । इस हिसाबसे निद्रा और प्रचलाका अन्तिम निषेक वारहवें गुणस्थानके
SR No.010639
Book TitleSaptatikaprakaran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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