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________________ गुणस्थानीमें भंगविचार विशेपार्थ-दर्शनावरण कर्मकी उत्तर प्रकृतियां नौ हैं। इनमेंसे त्यानद्धित्रिकका वन्ध सास्वादन गुणस्थान तक ही होता है। तथा चक्षुदर्शनावरण आदि चारका उदय अपनी उदयव्युच्छित्ति होने तक निरन्तर बना रहता है किन्तु निद्रादि पाचका उदय कटाचित् होता है और कदाचित् नहीं होता। उसमे भी एक कालमै एकका ही उदय होता है युगपत् दो या दो से अधिकका नहीं। अल इस हिमावसे मिथ्यात्व और सास्वादन इन दो गुणग्यानोमें ९ प्रकृतिक बन्ध, चार प्रकृतिक उदय और नौ प्रकृतिक सत्त्व तथा ९ प्रकृतिक वन्ध, पांच प्रकृतिक उदय और नौ प्रकृतिक सत्व ये दो भग प्राप्त होते है। इन दो गुणस्थानी से आगे मिश्रसे लेकर अपूर्वकरणके प्रथम भाग तक उदय और सत्तामें तो कोई फरक नहीं पड़ता किन्तु वन्धमे छह प्रकृतियां ही रह जाती हैं । अतः इन गुणस्थानोमें छह प्रकृतिक वन्ध, चार प्रकृतिक उदय और नो प्रकृतिक सत्त्व तथा छह प्रकृतिक वन्ध, पाच प्रकृतिक उदय और नौ प्रकृतिक सत्त्व ये दो भग प्राप्त होते हैं। यद्यपि त्यानडैित्रिकका उदय प्रमत्तसयत गुणस्थानके अन्तिम समयतक ही हो सकता है फिर भी इससे पाच प्रकृतिक उदयस्थान के कथनमें कोई अन्तर नहीं पाता । केवल विकल्प रूप प्रकृतियोमे ही अन्तर पड़ता है। छठे गुणस्थान तक निद्रादि पाचों प्रकृतिया विकल्पसे प्राप्त होती है और आगे निद्रा और प्रचला ये दो प्रई तियां ही विकल्पसे प्राप्त होती है। अपूर्वकरणके प्रथम भागमे निद्रा और प्रचलाकी वन्धन्युच्छित्ति हो जाती है, अतः आगे सूक्ष्मसम्पराय गुणस्थान तक वन्धमे चार ही प्रकृतियां रह जाती है किन्तु उदय और सत्ता पूर्ववत् चालू रहती है। अत' 'अपूर्व करणके दूसरे भागसे लेकर सूक्ष्मसम्पराय गुणस्थान तक तीन गुणस्थानोमे चार प्रकृतिक वन्ध, चार प्रकृतिक उदय और नौ
SR No.010639
Book TitleSaptatikaprakaran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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