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________________ जीवसमासोमें मंगविचार २०१ इसके यश कीर्ति और अयश कीर्ति इन दोमे से किसी एकका विकल्प से उदय होता है इतनी और विशेषता है। अत इस अपेक्षा से यहा २१ प्रकृतिक उदयस्थानके दो भग हुए । तदनन्तर शरीरस्थ जीवकी अपेक्षा इममें औदारिक शरीर, हुण्डसस्थान, उपघात तथा प्रत्येक और माधारण इनमे से कोई एक ये चार प्रकृतिया मिला दो और तियंचगत्यानुपूर्वी निकाल लो तो २४ प्रकृतिक उदयस्थान प्राप्त होता है। यहा पूर्वोक्त दो भगोको प्रत्येक और साधारण के विरल्प की अपेक्षा दो से गुणित कर देने पर चार भग होते हैं । किन्तु इतनी विशेपता है कि शरीरस्थ विक्रिया करनेवाले वाटर वायुकायिक जीवोके साधारण और यश कीर्ति का उदय नहीं होता इसलिये वहा एक ही भंग होता है। तथा दूमरी विशेपता यह है कि ऐसे जीवोके औदारिक शरीरका उदय न होकर वेक्रिय शरीर का उदय होता है अत इनके औदारिक शरीरके स्थानम वैक्रिय शरीर कहना चाहिये। इस प्रकार २४ प्रकृतिक उदयस्थानमे कुल पांच भग हुए। तदनन्तर इसमें पराघात के मिलाने पर शरीरपर्याप्ति से पर्याप्त हुए जीवके २५ प्रकृतिक उदयस्थान होता है। यहा भी पहले के समान पाच भग होते हैं। तदनन्तर इसमे उच्छ्वासके मिलाने पर २६ प्रकृतिक उदयस्थान होता है। यहा भी पहले के समान पाच भग होते है। अव यदि शरीर पर्याप्ति से पर्याप्त हुए जीवके आतप और उद्योत में से किसी एक प्रकृतिका उदय हो जाय तो भी २६ प्रकृतिक उदयस्थान प्राप्त होता है। किन्तु आतप का उदय साधारण के साथ नहीं होता है अतं इस पक्ष मे २६ प्रकृतिक उढयस्थान के यश कीर्ति और अयश कीर्तिकी अपेक्षा दो भग हुए । हॉ उद्योत को उदय साधारण और प्रत्येक इनमे से किसीके भी साथ होता है अत. इस पक्षी साधारण और प्रत्येक तथा यश कीर्ति और अयश कीर्ति
SR No.010639
Book TitleSaptatikaprakaran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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