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________________ २२ सप्ततिकाप्रकरण •r-प्रस्तुत सप्ततिका आहारक शरीर व माहारक मांगोपांग और वैक्रिय शरीर व वैक्रिय श्रांगोपांग इन दो युगलोंकी उद्दलना होते समय इनके बन्धन और सघातकी पहलना नियमसे होती है इस सिद्धान्तको स्वीकार करके नामकर्म के सत्वस्थान यतलाये गये हैं । गोम्मटपार कर्मकाण्डके मस्वस्थान प्रकरण में इसी सिद्धान्तको स्वीकार किया गया है किन्तु दिगम्बर परम्पराकी सप्ततिका उदलना प्रकृतियोंमें आहारक व वैक्रिय शरीरके बन्धन और पत्रात सम्मिलित नहीं करके नामकर्मके मत्वम्थान बतलाये गये हैं। गोम्मटमार कर्मकाण्डके त्रिभंगी प्रकरणमें इसी सिद्धान्तको स्वीकार किया गया है। मान्यता भेटके ये चार ऐसे उदाहरण हैं जिनके कारण दोनों सक्षतिकाओंकी अनेक गाथाएँ जुदी जुदी हो गई हैं और अनेक गयाओंमें पाठभेद भी हो गया है। फिर भी ये मान्यताभेद सम्प्रदायभेद पर आधारित नहीं हैं। इसी प्रकार कहीं कहीं वर्णन करनेकी शैलीमें भेद होनेसे गायाओंमें फरक पड़ गया है। यह अन्तर उपशमना प्रकरण और क्षपणाप्रकरणमें देखनेको मिलता है। प्रस्तुत सप्ततिका उपशमना और क्षपणाकी खासखास प्रकृतियोंका ही निदेश किया गया है। किन्तु दिगम्बर परम्पराकी सप्ततिकामें क्रमानुसार उपशमना और क्षपणा सम्बन्धी सब प्रकृतियोंकी संरयाका निर्देश करने की व्यवस्था की गई है। इस प्रकार यद्यपि इन दोनों सप्ततिकाओंमें भेद पढ़ जाता है तो भी ये दोनों एक उद्गमस्थानसे निकलकर और बीच बीच में दो धाराओं में विभक्त होती हुई अन्त में एकरूप हो जाती हैं। । दिगम्बर परम्पराकी सप्ततिकाकी प्राचीनता-पहले हम भनेक बार प्राकृत पंचसंग्रहका उल्लेख कर आये हैं । इसका सामान्य परिचय भी दे आये है । कुछ ही समय हुआ जब यह अन्य प्रकाशमें आया है। अमितिगतिका पंचसंग्रह इसीके आधारसे
SR No.010639
Book TitleSaptatikaprakaran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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