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________________ १६७ जीवसमासोमें भंगविचार और साधारणमें से कोई एक इन चार प्रकृतियोके मिलाने पर और तिर्यंचगत्यानुपूर्वी इस प्रकृत्तिके घटा लेने पर :४ प्रकृतिक उदयस्थान होता है। जो उक्त दोनों जीवस्थानोमे समानरूपसे सम्भव है । यहा सूक्ष्म अपर्याप्तक और वादर अपर्याप्तकमें से प्रत्येकके प्रत्येक और साधारणकी अपेक्षा दो दो भग होते हैं। इस प्रकार दो उदयस्थानोकी अपेक्षा दोनो जीवस्थानोमें से प्रत्येक के तीन तीन भग हुए। किन्तु विकलेन्द्रिय अपर्याप्तक, असजी अपर्याप्तक और सजी अपर्याप्तक इन पांच जीवम्थानोमें २१ और २६ प्रकृतिक दो उदयस्थान होते हैं। इनमे से अपर्याप्तक दो इन्द्रियके तिर्यंचगति, तिर्यंचगत्यानुपूर्वी, तैजस, कार्मण, अगुरुलघु, वर्णादि चार, दो इन्द्रिय जाति, नस, वादर, अपर्याप्तक, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, दुर्भग, अनादेय, अयश कीति और निर्माण यह २१ प्रकृतिक उदयस्थाना होता है। जो अपान्तराल गतिमें विद्यमान जीवके ही होता है अन्यके नहीं। यहा सभी पद अप्रशस्त हैं अत एक भग है। इसी प्रकार तीन इन्द्रिय आदि जीवस्थानोंमें भी यह २१ प्रकृतिक उदयस्थान और उसका १ भग जानना चाहिये। किन्तु इतनी विशेषता है कि प्रत्येक जीवस्थान में दो इन्द्रिय जाति न कह कर तेइन्द्रिय जाति आदि अपनी अपनी जातिका उदय कहना चाहिए। तदनन्तर शरीरस्थ जीवके औदारिक शरीर, औदारिक आंगोपाग, हुण्डसस्थान, सेवार्त सहनन, उपघात और प्रत्येक इन छह प्रकृतियांके मिलाने पर और तियेचगत्यानुपूर्वीके निकाल लेने पर २६ प्रकृतिक उदयस्थान होता है। यहां भी एक ही भग है। इस प्रकार 'अपर्याप्तक दो इन्द्रिय आदि प्रत्येक जीवस्थानमें दो दो उदयस्थानोंकी अपेक्षा दो दो भंग होते हैं। केवल अपर्याप्त सज्ञी इसके 'अपवाद हैं। वात यह है कि अपर्याप्त संज्ञी यह जीवस्थान 'तिर्यचगति और में दो इन्द्रिय का उदय कहनारक प्रांगो
SR No.010639
Book TitleSaptatikaprakaran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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