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________________ १७६ सप्ततिकाप्रकरण नहीं करता, इसलिये इसके २५ आदि उदयस्थान नहीं होते, किन्तु एक ३० प्रकृतिक ही उदयस्थान होता है। तथा इसके ९३, ९२, ८९, ८८, ८०,७९, ७६ और ७५ ये आठ सत्त्वस्थान पाये जाते हैं। इनमेसे पहलेके चार सत्त्वस्थान उपशमश्रेणीकी अपेक्षा और अन्तिम चार सत्त्वस्थान आपकश्रेणी की अपेक्षा कहे हैं। किन्तु जबतक अनिवृत्तिकरणके प्रथम भागमें स्थावर, सूक्ष्म, तिर्यंचद्विक, नरकद्विक, एकेन्द्रियादि चार जाति, साधारण, आतप और उद्योत इन १३ प्रकृतियोका क्षय नहीं होता तवतक ९३ आदि प्रारम्भके ४ सत्त्वस्थान क्षपकश्रेणीमे भी पाये जाते है। इस प्रकार जहाँ एक प्रकृतिक वन्धस्थान होता है, वहाँ एक ३० प्रकृतिक उदयस्थान और ९३, ९२, ८९, ८८, ८०, ७९, ७६ और ७५ ये आठ सत्त्वस्थान होते हैं यह सिद्ध हुआ। अव वन्धके अभावमे उदयस्थान और सत्त्वस्थान कितने होते हैं इसका विचार करते हैं-नामकर्मका वन्ध दसवे गुणस्थान तक होता है आगेके चार गुणस्थानोमे नही, किन्तु उटय और सत्त्व १४ वे गुणस्थान तक होता है फिर भी उसमे विविध दशाओ और जीवोकी अपेक्षा अनेक उदयस्थान और सत्त्वथान पाये जाते हैं। यथा___ केवलीको केवल समुद्धातमे ८ समय लगते हैं । इनमेसे तीसरे, चौथे और पाँचवे समय मे कार्मणकाय योग होता है, जिसमें पंचेन्द्रियजाति, वसत्रिक, सुभग, आदेय, यश कीर्ति, मनुष्यगति और ध्रुवोदय १२ प्रकृतियाँ इस प्रकार कुल मिलाकर २० प्रकृतिक उदयस्थान होता है और तीर्थकर विना ७९ तथा तीर्थकर और आहारक चतुष्क इन पाँचके विना ७५ ये दो सत्त्वस्थान होते है। अव यदि इस अवस्थामें विद्यमान तीर्थकर हुए तो उनके एक तीर्थकर प्रकृतिका भी उदय और सत्त्व होनसे २१ प्रकृतिक उदयस्थान
SR No.010639
Book TitleSaptatikaprakaran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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