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________________ वन्धस्थानत्रिकके सवेधभग १६५ सामान्यसे २१, २४, २५, २६, २७, २८, २९, ३० और ३१ ये नौ उदयस्थान होते है। खुलासा इस प्रकार है-जो एकेन्द्रिय, ढोइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चौइन्द्रिय, तिथंचपचेन्द्रिय और मनुष्य तेईस प्रकृतियोका वध कर रहा है उसके भवके अपान्तरालमें तो इक्कीस प्रकृतिक उदयस्थान होता है, क्योंकि २१ प्रकृतियोके उदयमें अपर्याप्तक एकेन्द्रियके योग्य २३ प्रकृतियोका बन्ध सम्भव है। २४ प्रकृतिक उदयस्थान अपर्याप्त और पर्याप्त एकेन्द्रियांके होता है. क्यो कि एकेन्द्रियोंके सिवा अन्यत्र यह उदयस्थान नहीं पाया जाता । पञ्चीस प्रकृतिक उदयस्थान पर्याप्तक एकेन्द्रियो के तथा वैक्रियिक शरीरको प्राप्त मिथ्यावष्टि तिथंच और मनुष्योके होता है। २६ प्रकृतिक उदयस्थान पर्याप्तक एकेन्द्रिय तथा पर्याप्तक और अपर्याप्तक दोइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चौइन्द्रिय, तियंचपचेद्रिय और मनुष्योके होता है। २७ प्रकृतिक उदयस्थान पर्याप्तक एकेन्द्रियोंके और वैक्रिय शरीरको करनेवाले तथा शरीर पर्याप्तिसे पर्याप्त हुए मिथ्यावष्टि तिथंच और मनुष्योके होता है। २८, २९ और ३० प्रकृतिक उदयस्थान मिथ्यादृष्टि पर्याप्तक टोइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चौइन्द्रिय, तिर्यंच पचेन्द्रिय और मनुष्योके होता है। तथा ३१ प्रकृतिक उदयस्थान मिथ्यादृष्टि विकलेन्द्रिय और तिर्यच पचेन्द्रिय जीवीके होता है। इन उपर्युक्त उदयस्थानवाले जीवो को छोड़कर शेष जीव २३ प्रतियोका बन्ध नहीं करते। तथा इन २३ प्रकृत्तियोका बन्ध करनेवाले जीवोंके सामान्यसे ९२, ८८,८६, • ८० और ७८ ये पाच सत्त्वस्थान होते हैं। इनमेसे २१ प्रकृतियो के उदयवाले उक्त जीवोके तो सव सत्त्वस्थान पाये जाते हैं। केवल मनुष्योके ७८ प्रकृतिक सत्त्वम्थान नहीं होता, क्योकि मनुष्यगति और मनुष्यगत्यानुपूर्वीकी उद्वलना करने पर ७८ प्रकतिक सत्त्वस्थान होता है किन्तु मनुष्योंके इन दो प्रकृतियोकी
SR No.010639
Book TitleSaptatikaprakaran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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