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________________ १६४ सप्ततिकाप्रकरण एगेगमेगतीसे एगे एगुदय अट्ठ संतम्मि। उवरयबंधे दस दस वेयगसंतम्मि ठाणाणि ॥ ३२ ॥ अर्थ-तेईस, पच्चीस और छब्बीस इनमेंसे प्रत्येक वन्धस्थानमे नौ उदयस्थान और पाँच सत्त्वस्थान होते हैं। अट्ठाईस प्रकृतिक वन्धस्थानमे आठ उदयस्थान और चार सत्त्यस्थान होते हैं। उनतीस और तीसमेंसे प्रत्येक वन्धस्थानमें नौ उदयस्थान और सात सत्त्वस्थान होते है। इकतीस प्रकृतिक बन्धस्थानमें एक उदयस्थान और एक सत्त्वस्थान होता है। एक प्रकृतिक वन्धस्थान मे एक उदयस्थान और आठ सत्त्वस्थान होते हैं। तथा वन्धके अभावमें उदय और सत्त्वकी अपेक्षा दस दस स्थान होते है ।। विशेपार्थ-इन दो गाथाओसे हमे केवल इतना ही ज्ञान होता है कि किस वन्धस्थानमे कितने उदयस्थान और कितने सत्त्वस्थान हैं। उनसे यह ज्ञात नहीं होता कि वे उदयस्थान और सत्त्वस्थान कौन कौन हैं, अत आगे उक्त दो गाथाओके आश्रयसे इसी बातका विचार करते है-तेईस प्रकृतिक वन्धस्थानमे अपर्याप्तक एकेन्द्रियके योग्य प्रकृतियोका वन्ध होता है जिसको एकेन्द्रिय, दोइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चौइन्द्रिय, तिर्यंच पंचेन्द्रिय और मनुष्यबांधते हैं। इन तेईस प्रकृतियोका वन्ध करनेवाले जीवोके (१) 'नवपचोदयसत्ता तेवीसे पण्णवीसछन्त्रीमे। अट्ट चउरहवीसे नवसन्तिगतीसतीसे य । एकके इगतीसे एक्के एक्कुदय असतंसा । उवरयवन्धे दस दस नामोदयसतठाणाणि ।'-पञ्च० सप्त. गा. ६९-१०० । रणवपंचोदयसत्ता तेवीसे पण्णुवीस छब्बीसे । अट्ट चदुरहवीसे णवसत्तुगुतीसतीसम्मि ॥ एगेग इगितीसे एगे एगुदयमसत्ताणि। उवरदवंधे दस दस उदयसा होति णियमेण ॥'-गो० कर्म० गा० ७४०-७४१ ।
SR No.010639
Book TitleSaptatikaprakaran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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