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________________ नामकर्मके सत्त्वस्थान १६१ तिके कम कर देने पर ९२ प्रकृतिक सत्त्वस्थान होता है। तथा ९३ प्रकृतिक सत्त्वस्थानमेंसे आहारक शरीर, आहारक आगोपाग, आहारक सघात और आहारक वन्धन इन चार प्रकतियोके कम कर देने पर ८९ प्रकृतिक सत्त्वस्थान होता है। इसमे से तीर्थकर प्रकृतिके कम कर देने पर ८८ प्रकृतिक सत्त्वस्थान होता है। इन ८८ प्रकृतियोमेंसे नरकगति और नरकगत्यानुपूर्वी की या देवगति और देवगत्यानुपूर्वीकी उद्वलना हो जाने पर ८६ प्रकृतिक सत्वस्थान होता है। अथवा, नरकगतिके योग्य प्रकृतियोका वन्ध करनेवाले ८० प्रकृतिक सत्त्वस्थानवाले जीवके नरकगति, नरकगत्यानुपूर्वी, वैक्रियशरीर, वैक्रिय प्रांगोपाग, वैक्रिय सघात और वैक्रिय बन्धन इन छह प्रकृतियोका वन्ध होने पर ८६ प्रकृतिक सत्त्वस्थान होता है। इसमेसे नरकगति, नरकगत्यानुपूर्वी, और वैक्रियचतुष्क इन छह प्रकृतियो की उद्वलना हो जाने पर ८० प्रकृतिक सत्त्वस्थान होता है। या देवगति, देवगत्यानुपूर्वी और जाने पर ८० प्रकृतिक सत्वस्थान होता है। ६२ में से उक्त १३ प्रकृतियोंके घटा देने पर ७९ प्रकृतिक सत्त्वस्थान होता है। इन्हीं १३ प्रकृतियोंको ६१ मेंसे घटाने पर ७८ प्रकृतिक सत्त्वस्थान होता है। ९० मेंसे इन्ही १३ प्रकृतियोंको घटाने पर ७७ प्रकृतिक सत्त्वस्थान होता है। तीर्थकर अयोगिवलीके १० प्रकृतिक सत्त्वस्थान होता है और सामान्य अयोगिकेवलोके । प्रकृतिक सत्त्वस्थान होता है। कर्मप्रकृतिमे व पचसग्रहसप्ततिकामें नामकर्मके १०३, १०२, ६६, ६५, ९३, ६०, ८६, ८४, ८३, ८२, ६ और ८ ये १२ सत्त्वस्थान भी बतलाये है। यहाँ ८२ प्रकृतिक सत्त्वस्थान दो प्रकार से बतलाया है। विशेष व्याख्यान वहाँ से जान लेना चाहिये। सप्ततिकाप्रकरणके सत्त्वस्थानोंसे इनमें इतना ही अन्तर है कि ये स्थान बन्धनके १५ भेद करके बतलाये गये हैं। ११
SR No.010639
Book TitleSaptatikaprakaran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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