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________________ १६० . • सप्ततिकाप्रकरण । अव नामकर्म के सत्तास्थानोका कथन करते हैं- , . तिदुनउई उगुनउई अट्ठच्छलसी असीइ उगुसीई। अठ्ठयछप्पणत्तरि नव अट्ठ य नामसंताणिं ॥२९॥ अर्थ--नाम कर्म के ९३, ९२, ८९, ८८, ८६, ८०,७९, ७८, ७६, ७५, ९ और ८ प्रकृतिक वारह सत्तास्थान होते हैं। विशेपार्थ--इस गाथामे यह बतलाया है कि नामकर्मके कितने सत्त्वस्थान हैं और उनमेसे किस सत्त्वस्थानमे कितनी प्रकृतियो का सत्त्व होता है। किन्तु प्रकृतियोका नाम निर्देश नहीं किया है अतः आगे इसीका विचार किया जाता है-नाम कर्मकी सब उत्तर प्रकृतियाँ ९३ हैं अतः ९३ प्रकृतिक सत्त्वस्थानमें सव प्रकृतियोका सत्त्व स्वीकार किया गया है। इनमेसे तीर्थकर प्रकृ. (१) गोम्मटसार कर्मकाण्डमें ६३, ६२: ९१, ६०, ८८,८४, ८२, ८०, ७६, ७८,७५, १० और ६ प्रकृतिक १३ तेरह सत्त्वस्थान वतलाये हैं। यथा___ तिदुइगिणउदी णउदी अडच्उदोश्रहियसीदि सौदी य । ऊणासीदत्तरि सत्तत्तरि दस य णव सत्ता ॥ ६०६ ॥ ___ यहाँ ६३ प्रकृतिक सत्त्वस्थानमें सव प्रकृतियोंका सत्त्व स्वीकार किया गया है। तीर्थकर प्रकृतिके कम कर देने पर ६२ प्रकृतिक सत्त्वस्थान होता है। श्राहारक शरीर और आहारक श्रागोपागके कम कर देने पर ९१ प्रकृतिक सत्त्वस्थान होता है। तीर्यकर, आहारक शरीर और आहारक श्रांगोपागके कम कर देने पर ६० प्रकृतिक सत्त्वस्थान होता है। इसमेंसे देवद्विककी उद्वलना होने पर ८८ प्रकृतिक सत्त्वस्थान होता है। इसमेंसे नारक चतुष्ककी उद्वलना होने पर ८४ प्रकृतिक सत्त्वस्थान होता है । इसमेंसे मनुष्यद्वि ककी उद्वलना होने हर ८२ प्रकृतिक सत्त्वस्थान होता है। क्षपक अनिवृत्ति करणके १३ प्रकृतियोंमेंसे नरकद्विक श्रादि १३ प्रकृतियोंका क्षय हो
SR No.010639
Book TitleSaptatikaprakaran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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